मैं जा तो रहा हूं सरहद पर ,कुछ कर दिखाने का जज़्बा लेकर,
आंखों में कुछ ख़्वाब बड़े ,दिल में थोड़ा सा डर ले कर ।
नहीं डरता नहीं हूं मैं कि वापस नहीं आ पाऊंगा,
डरता हूं उनके लिए ,जिन्हें पीछे छोड़ जाऊंगा।
मां का भीगा आंचल रह रह कर मुझे बुलाएगा,
खुरदुरे हाथों से उसका मेरे माथे पर हाथ फेरना मुझे रुलाएगा।
मेरी नई नवेली दुल्हन का चितवन मुझे लुभाएगा।
घूंघट की ओट से झांकती आम की फांक जैसी आंखें मुझे भूलती नहीं,
उसकी डबडबाई आंखों में तैरती मेरी छवि मुझे भूलती नहीं।
बाबा मानो बिना कुछ कहे ही बहुत कुछ कह रहे हैं,
खुद घबराए हुए हैं ,मुझे हौसला दे रहे हैं।
हमेशा मज़ाक करने वाली भाभी आज चुप सी हो गई है,
चाचू चाचू कहके मचलने वाली गुड्डी भी गुमसुम सी हो गई है।
भैया गैया को सानी देने के बहाने वहां से हट गया है,
मेरे बचपन का दोस्त रोते रोते मुझसे लिपट गया है ।
गांव की सरहद से देश की सरहद तक का सफ़र करने निकल पड़ा हूं,
पीछे मुड़ कर देखे बिना निकल पड़ा हूं।
थोड़ा सा डर , बहुत सा जज़्बा लेकर निकल पड़ा हूं।
घर गांव देश का नाम बढ़ाने निकल पड़ा हूं।
मैं फौजी बन, जीत का परचम फहराने निकल पड़ा हूं।
तिरंगे का मान रखने निकल पड़ा हूं,
नहीं फहरा पाया अगर तिरंगा तो उसी में लिपट कर वापस आने के लिए निकल पड़ा हूं ।

इला पचौरी

Share.
Leave A Reply Cancel Reply
Exit mobile version