भारत एक ऐसा देश है जहां पर नारी को सदैव ही सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। उसे देवी समान समझा गया है और समझा भी क्यों न जाए जब वह हर रूप में अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह बखबूी करना जानती है। किंतु बड़ा दुःख होता है जानकर हमारे समाज में आज भी चंद लोग ऐसे हैं जो स्त्री को केवल भोग की दृष्टि से देखते हैं। यही नहीं उनके विरुद्ध आवाज़ उठाई भी जाए तो उस आवाज़ का दमन करने का हर सभंव प्रयास करते हैं। ऐसा ही मामला जंतर मतंर पर चल रहे पहलवान आंदोलन के रूप में सामने आया है।

इस धरना प्रदर्शन के तहत देश को गौरवान्वित करने वाली महिला खिलाड़ियों का आरोप है कि भारतीय कुश्ती सघं के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह द्वारा उन्हें आए दिन यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता था। अध्यक्ष के इस कृत्य कि शिकायत तक दर्ज़ करवाने में सप्रुीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा क्योंकि दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के हाथ की कठपतुली की भांति काम कर रही है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर रिपोर्ट तो दर्ज़ हुई परंतु गिरफ़तारी को टालने का काम लगातार दिल्ली पुलिस के अधिकारियों द्वारा किया जा रहा है।

दरअसल बजृभूषण शरण सिंह को भाजपा का बाहुबली नेता माना जाता है। इनके विरुद्ध यदि कोई कार्यवाही की जाती है तो सत्तापक्ष को राजनीतिक दृष्टि से बड़ी हानि होने कि संभावना है। दिल्ली पुलिस भी इसी कारणवश मामले की जांच में ढिल बरत रही है। अब सवाल यह उठता है कि क्या सत्ता का लोभ देश की बेटियों कि इज़्ज़त से बड़ा है। जहां एक ओर भाजपा सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा लगाती है वहीं दूसरी ओर भापाई नेताओं के पास अपने सम्मान के लिए धरने पर बैठी बेटियों की आवाज़ तक सनुने का समय नहीं है । इस आंदोलन पर बैठे खिलाड़ियों के सघंर्ष से ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि जब अतंराष्ट्रीय स्तर पर देश का मान बढ़ाने वाली बेटियों को न्याय के लिए इन विषम परिस्थितियों से गुज़रना पड़ रहा है तो हमारे देश में समान्य वर्ग की बेटियों कि सुरक्षा कहां तक सनिुनिश्चित है।

नेहा भारद्वाज

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