घड़े बेशक हैं रीते, हमारे दिल हैं भरे भरे,
आओ चंद पलों में इनको खाली करते चलें।
निकाल लें गुबार , थोड़ा रो लें, थोड़ा हंस लें।
पानी भरने के बहाने ,इस रेगिस्तान में अपना दिल हल्का कर लें।
गर्म ,रेतीली हवाएं हमारी गवाह बनेंगी,
हमारे आंसू इस रेतीली मिट्टी में जज़्ब हो कर कैक्टस बन के उग आयेंगे….
यही कैक्टस किसी दिन हमें रुलाने वालों के पैरों में धंस जायेंगे और उन्हें भी रुलाएंगे ।

घर से पानी लेने आना ,और पानी लेकर घर जाने के बीच का वक्त सिर्फ हमारा है,
आओ इस वक्त को पूरी तरह जी लें,
इन फुरसत के पलों को बरसात की बूंदों की तरह पी लें।

हमारे लहंगों के इंद्रधनुषी रंग चुरा कर रेगिस्तान को रंगीन बना दें।
अपनी हंसी को रेतीली फिजाओं में बरसा दें।

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