आज जब पूरा विश्व अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मना रहा है, यह केवल तन और मन की शुद्धि का पर्व नहीं, बल्कि आत्मशक्ति की खोज और सामाजिक बदलाव की ओर एक सशक्त कदम है। योग केवल शरीर को लचीलापन देने की प्रक्रिया नहीं, यह हमें आत्मानुशासन, सहनशीलता और आंतरिक शक्ति प्रदान करता है।

मैं, गीता त्रेहान, एक समाजसेवी और महिला सशक्तिकरण की पक्षधर के रूप में, यह कहना चाहती हूं कि योग हर स्त्री के जीवन में एक ऐसा औज़ार बन सकता है जो उसे न केवल आत्मनिर्भर बनाता है, बल्कि मानसिक मजबूती भी देता है।

आज की नारी हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है – शिक्षा, राजनीति, सामाजिक सुधार या व्यावसायिक दुनिया। परंतु इसके लिए उसे मानसिक और शारीरिक मजबूती की ज़रूरत है, जो योग से प्राप्त होती है। योग आत्म-प्रेम सिखाता है, और जब एक स्त्री खुद से प्रेम करना सीख जाती है, तब वह समाज को भी प्रेम देना सीखती है। यही सच्चा सशक्तिकरण है।

मैं समाज के हर वर्ग से अपील करती हूं – विशेषकर महिलाओं से – कि वे योग को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं। यह न केवल आपकी व्यक्तिगत उन्नति का माध्यम बनेगा, बल्कि समाज के संपूर्ण विकास की नींव भी रखेगा।

आइए, इस योग दिवस पर हम सब यह संकल्प लें कि हम योग को केवल एक शारीरिक व्यायाम की तरह नहीं, बल्कि जीवन दर्शन के रूप में अपनाएंगे – एक ऐसा दर्शन जो हमें भीतर से जोड़ता है, और बाहर की दुनिया को बदलने की प्रेरणा देता है। “योग करें, नारी शक्ति को जागरूक करें, समाज को सशक्त बनाएं!”

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