नई दिल्ली : सुप्रसिद्ध चित्रकार माइकल एंजेलो ने एक अवसर पर कहा था कि पत्थर के जर्रे-जर्रे में एक प्रतिमा छुपी है और इसे ढूँढ़ना मूर्तिकार का काम है। वास्तव में, संगतराशी (मूर्तिकला) पुरातत्व-विज्ञान की तरह है, जहाँ आप तभी कुछ प्राप्त कर पाते हैं जब आप खुदाई (उत्खनन) करते हैं।

प्रतिष्ठित भारतीय मूर्तिकार रवींद्र रेड्डी ने भी अपने कलात्मक आवेगों के माध्यम से इसे प्रमाणित करने का प्रयास किया है, और फिल्म निर्माता प्रेमजीश अचारी ने मूर्तिकार की इस विशिष्टता को अपने द्वारा निर्देशित और गुरुग्राम में गैलरी डॉटवॉक द्वारा निर्मित अपनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म “द अदर फेसेस” में उम्दा ढंग से कैद किया है।

बत्तीस मिनट की अवधि वाली यह लघु फिल्म 28 और 29 अप्रैल को डॉ. राजेंद्र प्रसाद रोड स्थित जवाहर भवन (नई दिल्ली में मेट्रो स्टेशन गेट नंबर 2 में केंद्रीय सचिवालय के सामने) में एक दो-दिवसीय कार्यक्रम के दौरान प्रदर्शित की जाएगी, जहाँ क्यूरेटर (संग्रहाध्यक्ष) और फिल्म निर्माता रेड्डी के कार्यों के बारे में अपने प्ररिप्रेक्ष्य (दृष्टिकोण) पर विचार करेंगे, जिनकी एक विशिष्ट शैली है जिसने उन्हें दुनियाभर के समीक्षकों की नज़रों में एक प्रशंसित कलाकार के रूप में प्रतिष्ठित किया है।

पहले दिन यह फिल्म सायंकाल 4.30 बजे दिखाई जाएगी और ठीक इसके बाद निर्देशक प्रेमजीश अचारी तथा फिल्म के लेखक-सह-निर्माता अंकुश गुप्ता के साथ “बिहाइंड द सीन्स : द अदर फेसेस” पर परिचर्चा का आयोजन किया जाएगा। आगंतुक भार्गव बारला द्वारा खींची गई रवींद्र रेड्डी और उनकी मूर्तिकला से संबंधित तस्वीरों का भी अवलोकन सकते हैं।

दूसरे दिन, कार्यक्रम की शुरुआत “द मैजिक ऑफ मेकिंग : द आर्टिस्ट्री एंड इंट्रीसिस ऑफ स्कल्प्टिंग” विषय पर पैनल चर्चा के साथ शाम 5 बजे होगी, जिसमें प्रतिभागी रवींद्र रेड्डी की गहन मूर्तिकला यात्रा पर प्रकाश डालेंगे। यहाँ अंकुश गुप्ता, प्रेमजीश अचारी और इना पुरी (क्यूरेटर और लेखक) रवींद्र रेड्डी के साथ बातचीत करते दिखाई देंगे। इस सत्र की समाप्ति फिल्म की दूसरी स्क्रीनिंग के साथ होगी।

प्रेमजीश अचारी द्वारा निर्देशित ‘द अदर फेसेस’ एक ऐसी फिल्म है जो समीक्षकों द्वारा प्रशंसित मूर्तिकार रवींद्र रेड्डी के कलात्मक आवेगों, चिंतन और साथ ही चिंतन-प्रणाली की जटिलता की समीक्षा करती है। अपने निर्देशन वाली पहली फिल्म में, अचारी दर्शकों को अवाक कर देनेवाले नयनाभिराम दृश्यों से रू-ब-रू कराते हैं और इन दृश्यों की गहन नज़दीकियों में ले जाते हैं। अचारी ने रवींद्र रेड्डी की रचनात्मक प्रक्रिया को प्रेरित करने वाले कलात्मक आवेग का दस्तावेजीकरण किया है। यह फिल्म संगतराशी की कलात्मक प्रक्रियाओं का विवरण तो उपस्थित करेगी ही, साथ ही ऐसी अंतर्दृष्टि भी प्रदान करेगी जहाँ दर्शक यह देख सकें कि एक कलाकार रचनात्मक प्रक्रिया और चिंतन में किस प्रकार संलग्न होता है।

रवींद्र रेड्डी भारत के महत्वपूर्ण समकालीन मूर्तिकारों में से एक हैं जिनकी अपनी एक विशिष्ट शैली है और उनकी यही ख़ासियत उन्हें दुनियाभर में समीक्षकों द्वारा प्रशंसित कलाकार के रूप में स्थापित करती है। उनकी बनाई कलाकृतियाँ आज विभिन्न संग्रहालयों, सार्वजनिक स्थानों और दीर्घाओं का हिस्सा हैं। समय के फलक पर चार दशक से अधिक अरसे से चमचमा रहे अपने कला-करियर के माध्यम से श्री रेड्डी ने भारतीय कला-क्षेत्र में अपना एक अनमोल मुकाम बनाया है।

गैलरी डॉटवॉक के निदेशक और फिल्म के निर्माता श्रीजीत सीएन ने गैलरी प्रदर्शनियों में रवींद्र रेड्डी के कार्यों को प्रदर्शित किया है। उन्होंने कहा, “रवींद्र रेड्डी के साथ काम करना बड़े सम्मान की बात है। 1970 के दशक में उनकी कलाकृतियाँ भारत में मूर्तिकला के प्रमुख प्रचलनों को बदलने की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण थीं। उन्होंने मूर्तिकला की भाषा में रंग, एंद्रियता (कामुकता) और गतिशीलता का संचार किया है। इन्हें जानना एक प्रेरक यात्रा है और इस बात को लेकर हम बेहद उत्साहित हैं कि हमें उनकी रचनात्मक प्रक्रिया को बहुत करीब से देखने का अवसर मिल रहा है।”

प्रेमजीश अचारी ने विभिन्न महत्वपूर्ण कला-प्रदर्शनियों और सार्वजनिक कला पहलों को क्यूरेट किया है और कोच्चि-मुज़िरिस बिएननेल के साथ निकटता से जुड़े हुए हैं। वे आउटलुक और आर्ट इंडिया जैसी पत्रिकाओं में नियमित रूप से कला-स्तंभ (आर्ट कॉलम) लिखते हैं। श्री अचारी को उनके क्यूरेटोरियल और अकादमिक योगदान के लिए मान्यता स्वरूप “टेक ऑन आर्ट” और स्विस आर्ट्स काउंसिल द्वारा आर्ट राइटर्स अवार्ड 2021 से सम्मानित किया गया है। द वीक पत्रिका द्वारा उनका नाम “40 साल से कम उम्र के 40 महत्वपूर्ण सर्जनशील व्यक्तित्व” की सूची में शामिल किया गया था।

प्रेमजीश अचारी के अनुसार, “यह फिल्म पारंपरिक वृत्तचित्र या साक्षात्कार प्रारूप से हटकर है। हमारा प्रयास उन जटिल प्रक्रियाओं को प्रदर्शित करना था जिनके माध्यम से रवींद्र रेड्डी ने भव्य और शानदार प्रतिमाएँ गढ़ीं। मेरे लिए यह बहुत आसान था कि मैं उनकी गढ़ी मूर्तियों के चेहरों और महिला चेहरों के बीच एक स्पष्ट संबंध देख पाऊँ। इस संबंध में पहले ही काफी कुछ लिखा जा चुका है। इसकी बजाय, मैंने यह संभावना खोली (देखी) है कि उनके मूर्तिकलात्मक चेहरे मानवीय स्थिति को हू-ब-हू प्रतिबिंबित करते हैं। फिल्म में एक मधुर धीमी लय भी मौजूद है जो आपके ध्यान के आनंद को दुगुना कर देती है।

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