दिल्ली में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं. ये आठवां चुनाव है. दिल्ली की जनता ने बीजेपी हो या कांग्रेस या फिर आम आदमी पार्टी- सबको सत्ता में आने का मौका दिया है. 1993 में जब पहली बार चुनाव हुए और बीजेपी ने राम मंदिर आंदोलन की लहर में एकतरफा जीत हासिल की. हालांकि, पांच साल के कार्यकाल में नौबत ऐसी आईं कि पार्टी को तीन बार मुख्यमंत्री बदलने पड़े. उसके बाद 1998 में चुनाव हुए तो कांग्रेस ने बीजेपी से सत्ता छीन ली. दिल्ली में लगातार तीन बार कांग्रेस और अब पिछले तीन बार से सत्ता में आम आदमी पार्टी है. 

बीजेपी चाहती है कि इस बार 31 साल का सूखा खत्म हो और फिर से दिल्ली पर राज करने का मौका मिले तो कांग्रेस अपनी हार का बदला लेने के लिए मशक्कत कर रही है. जबकि आम आदमी पार्टी की कोशिश है कि लगातार चौथी बार सरकार में आने का रिकॉर्ड बनाया जाए. दिल्ली में सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड कांग्रेस की शीला दीक्षित का है. वे 15 साल तक सीएम रहीं. उसके बाद दूसरे नंबर पर अरविंद केजरीवाल हैं. वे करीब 11 साल तक मुख्यमंत्री रहे.

जब देश में चल रहा था राम मंदिर आंदोलन

दिल्ली विधानसभा का 1993 में गठन हुआ था और राष्ट्रीय राजधानी में उसी साल पहली बार विधानसभा चुनाव हुए थे. यह वो दौर था, जब देश में राम मंदिर आंदोलन की मुखर आवाज उठ रही थी. बीजेपी इस आवाज की अगुआकार बन गई थी. बीजेपी 1993 में राम मंदिर के लिए जन जागरण अभियान चला रही थी. साल के अंत में चुनाव हुए तो बीजेपी ने प्रचंड बहुमत हासिल किया और 49 सीटें जीतीं. कांग्रेस सिर्फ 14 सीटों पर सिमट गई थी. दिल्ली में कुल 70 सीटों पर चुनाव हुए और बहुमत के लिए 36 विधायकों की जरूरत थी.

चुनाव में कैसे आए थे नतीजे?

1993 में दिल्ली में 58 लाख 50 हजार 545 वोटर्स थे. कुल 36 लाख 12 हजार 713 लोगों ने मतदान किया था और  61.8% वोटिंग हुई थी. 70 सीटों पर चुनाव हुए थे. 1316 उम्मीदवार मैदान में उतरे थे. इनमें 59 महिलाएं थीं. हालांकि नतीजे आए तो सिर्फ तीन महिलाएं ही चुनाव सकीं. बलजीत नगर से कृष्णा तीरथ, मिंटो रोड से ताजदार बाबर और कालकाजी से पूर्णिमा सेठी चुनी गईं. पहली विधानसभा में बीजेपी के चरती लाल गोयल स्पीकर बने और कृष्णा तीरथ डिप्टी स्पीकर बनी थीं.

पहले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 49 सीटें जीतीं थीं और 42.80 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया था. दूसरे नंबर पर कांग्रेस आई थी और 14 सीटें जीतीं थीं. कांग्रेस ने 34.50 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया था. नतीजे में तीसरे नंबर पर जनता दल आया था. उसे 4 सीटें और 12.60 प्रतिशत वोट मिले. तीन निर्दलीय भी चुनाव जीते थे और उन्हें 5.90 प्रतिशत वोट मिले थे.

दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने प्रचंड बहुमत हासिल किया था. (Picture- Getty)

शालीमार बाग से बीजेपी के साहिब सिंह वर्मा ने सबसे ज्यादा 21770 वोटों से जीत हासिल की थी. विश्वास नगर से मदन लाल खुराना को 6560 वोटों से जीत मिली थी. आदर्श नगर से बीजेपी के जयप्रकाश ने सबसे कम 40 वोटों से चुनाव जीता था. महशूर क्रिकेटर कीर्ति आजाद गोल मार्केट से बीजेपी उम्मीदवार थे और उन्होंने 3803 वोटों से जीत हासिल की थी.

कौन-कितने दिन रह पाया बीजेपी का CM?

हालांकि, बीजेपी को पांच कार्यकाल के कार्यकाल में अपने तीन मुख्यमंत्री बदलने पड़े थे. उसके बाद से बीजेपी एक अदद जीत की तलाश में है. बीजेपी से सबसे पहले मदन लाल खुराना मुख्यमंत्री बने थे. वे करीब 27 महीने ही पद संभाल सके और इस्तीफा देना पड़ा था. उसके बाद साहिब सिंह वर्मा सीएम बनाए गए. वे 31 महीने से ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहे. आखिरी में सुषमा स्वराज 52 दिन के लिए दिल्ली की सीएम बनीं और नतीजे आए तो कांग्रेस ने बीजेपी से सत्ता छीन ली.

किस रणनीति से चुनाव में उतरी थी बीजेपी?

1993 के चुनाव में बीजेपी मदनलाल खुराना की अगुवाई में चुनावी मैदान में उतरी थी, इसके बावजूद आलाकमान ने उन्हें मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं किया था. हालांकि उस वक्त दिल्ली में बीजेपी की सियासत में मदनलाल खुराना- विजय कुमार मल्होत्रा- केदार नाथ साहनी की तिकड़ी की तूती बोलती थी. बीजेपी दिल्ली की सियासी जंग फतह करने में कामयाब रही तो मदनलाल खुराना मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे.

बीजेपी को क्यों बदलने पड़े तीन सीएम?

मदन लाल खुराना:

मदन लाल खुराना का जन्म 1936 में पाकिस्तान के लायलपुर में हुआ था. बंटवारे के बाद उनका परिवार पाकिस्तान से दिल्ली आ गया. उस समय खुराना 12 साल के थे. खुराना का परिवार दिल्ली आया तो यहां कीर्ति नगर के एक शरणार्थी शिविर में रहने लगा. लेकिन खुराना के नसीब में कुछ और ही लिखा था. आगे चलकर वे उसी दिल्ली के मुख्यमंत्री बने, जहां उन्हें शरणार्थी बनकर शिविर में बचपन के दिन गुजारने पड़े.

खुराना ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के किरोड़ी मल कॉलेज से ग्रेजुएशन किया. बाद में पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए इलाहाबाद चले गए और वहां छात्र राजनीति में सक्रिय हो गए. जीविकोपार्जन के लिए खुराना ने संघ संचालित बाल भारती स्कूल में पढ़ाया. कुछ साल बाद एक कॉलेज में लेक्चरर दिए. 1959 में उन्हें इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में छात्रसंघ का महासचिव चुना गया. 1960 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के महासचिव चुने गए. 1965 से लेकर 1967 तक जनसंघ के महासचिव रहे. 

दिल्ली विधानसभा चुनाव में मदन लाल खुराना बीजेपी के चेहरे थे. (Picture- Getty)

श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जब जनसंघ की स्थापना की तो दिल्ली में उन्हें खुराना का साथ मिला. उस समय दिल्ली में मदन लाल, केदार नाथ साहनी और विजय कुमार मल्होत्रा की तिकड़ी चर्चा थी. इस तिकड़ी ने पंजाबियों के बीच जनसंघ को खूब मजबूत किया. 1967 में मदन लाल ने पहाड़गंज वॉर्ड के…


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