मेरे कुछ सवाल माता रानी से-
एकता सहगल मल्होत्रा
पढ़ी लिखी हूँ मैं, हूँ मैं बुद्धिमति भी
सक्षम भी हूँ, हूँ मैं अपने पैरों पर खड़ी भी

फिर भी मेरे पंख क्यों काट दिए
क्यों मेरे सपने कुछ छीन लिए, कुछ बाँट दिए

माँ तू तो जगत जननी है, तू सब है जानती
मेरे सपनों को समझती है, मेरी काबिलियत है पहचानती

तू समझा दे अपने भक्तों को
जो स्त्री अपने वजूद से दूसरा जीवन इस दुनिया में ला सकती है
जो स्त्री अपनी तपस्या से धरती को हिला सकती है
उसी के पंख तुम कतर देते हो
उसी की उड़ान तुम समेट देते हो

तुम्हें तो उसके पंखों को हवा देनी चाहिए
उसके एक – एक सपने की तस्वीर लेनी चाहिए

क्यों तुम लड़कियों से कहते फिरते हो,
तेरे पंख निकल आए है
तू बहुत उड़ने लगी है

तू बनी है घर गृहस्थी संभालने के लिए
तू जन्मी है दूसरों की सेवा के लिए

माँ तू क्यों नहीं स्त्रियों को समझाती
तुम्हें जो पंख मिले हैं, वो असली हैं
तुम्हारी आंखों में जो सपने पले है, वो भी असली हैं,

तुम खूब पंख फैलाओ
खुले आसमान में उड़ – उड़ जाओ

एक माँ बन कर अपनी बहू – बेटी की ताकत बन जाओ
उसको उसकी क्षमताओं से मिलवाओ, अवगत करवाओ

हम स्त्रियां ही एक दूसरे के पंख क्यों काट देती हैं
हम स्त्रियां ही एक दूसरे की बात क्यों काट देती हैं

हे जगत जननी जगदंबा, तुम सब को समझाओ
सब मिल जुल के खुले गागन में अपने पंख लहराओ
ये जमीन तुम्हारी है, तुम्हारा ही है आसमान भी
तुम सब मिल जुल कर इस दुनिया पर छा जाओ

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