समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग को लेकर सुप्रीमकोर्ट में पन्द्रह याचिकाएं दायर हुई है l जिस पर आज सुप्रीमकोर्ट में सुनवाई हो रही है l सोमवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीमकोर्ट में आवेदन देकर कहा कि शादी एक सामाजिक संस्था है और इस पर किसी नए अधिकार के संबंध को मान्यता देने का अधिकार केवल विधायिका के पास है और यह न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में नहीं है l

केंद्र सरकार ने कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाएं सिर्फ शहरी अभिजात वर्ग के विचारो को दर्शाती है l इसे पुरे देश के नागरिको का विचार नहीं माना जा सकता l आपको बता दे कि पांच जजों की सविधान पीठ इस पर सुनवाई कर रही है l इसमें मुख्य न्यायाधीश डिवाई चंद्र चूड जस्टिस एसके कौल, जस्टिस एसआर भट, जस्टिस हीमा कोहली, और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल है l

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का कहना है कि समलैंगिक विवाह पर संसद को फैसले लेने दीजिए l इसी पर सीजेआई डिवाई चंद्र चूड ने कहा कि हम इंचार्ज है और हम तय करेंगे कि किस मामले और सुनवाई करनी हैं और कैसे करनी है l हम किसी को भी इज़ाज़त नहीं देंगे कि वह हमे बताये सुनवाई करनी है या नहीं l

सॉलिसिटर जनरल की दलील पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम आने वाले चरण में केंद्र की दलीले भी सुनेंगे l कोर्ट का कहना है कि हम इस बात से इंकार नहीं कर रहे है इस मामले में विधायिका एंगल भी शामिल है l हमे इस मामले में कुछ तय करने के लिए सब कुछ तय करने की जरुरत नहीं है l

एक याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि समलैंगिको में एकजुटता के लिए शादी की जरुरत है l सुनवाई के दौरान पीठ के कहा कि 2018 के धारा 377 के नवतेज के मामले से आज तक हमारे समाज में समलैंगिक संबंधो को लेकर काफी हद तक स्वीकार्यता बढ़ी है l जो की एक बहुत बड़ी उपलब्धि है l पीठ ने कहा कि एक विकसित भविष्य के लिए व्यापक मुद्दों को छोड़ा जा सकता है l

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