एकता सहगल मल्होत्रा

हिन्दी, सिर्फ एक भाषा नहीं
हमारा गरूर हैं
इस देश को बांध के रखे वो डोर है ।
विदेश में सुने तो लगे, परदेस में अपने मिल गए
मानो घर के बिलकुल करीब हो गए
हिन्दी तो जंननी हैं कई भाषा की,
हिन्दी तो है धनी और गरीब के बीच की कड़ी….
हिन्दी ही तो है कड़ी पीढ़ी दर पीढ़ी की,
एक तरफ है मीठी तो दूसरे तरफ मात्रा से है पिटती।
कम शब्दों में बहुत कुछ कह जाती,
ऐसी प्यारी है ये हिन्दी हमारी।

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