मणिपुर की हिंसा को लेकर संसद के दोनों सदनों में राजनीति हंसा भड़की हुई है l मणिपुर की हिंसा, आगज़नी तीन महीने से थमने का नाम नहीं ले रही है l इधर उस हिंसा पर संसद में बहस के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच झगड़ा चल रहा है। विपक्ष की मांग है कि प्रधानमंत्री मोदी इस मामले पर अपने बयान दें l इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा की जाए l गृह मंत्री अमित शाह ने नेता प्रतिपक्ष को चिट्ठी लिखकर कहा था कि हम मणिपुर पर बहस करना चाहते हैं, कृपया सहयोग कीजिए।

आपको बता दें कि गृह मंत्री अमित शाह ने नेता प्रतिपक्ष को चिट्ठी लिखकर कहा था कि हम मणिपुर पर बहस करना चाहते हैं, कृपया सहयोग कीजिए। इसके बाद मल्लिकार्जुन खडगे ने अपनी जवाबी चिट्ठी में अमित शाह पर व्यंग्य कसा। मल्लिकार्जुन खडगे ने कहा कि सुबह प्रधानमंत्री विपक्ष की तुलना ईस्ट इंडिया कंपनी और आतंकवादियों से करते हैं और शाम को गृहमंत्री हमें भावुक चिट्ठी लिखते हैं। यह बीजेपी का दोहरा चरित्र है। उन्होंने कहा कि यह सरकार की कथनी और करनी में अंतर को बताता है। कुल मिलाकर बहस करने के लिए बहस की जा रही है।

अभी तक मणिपुर का कोई हल नहीं निकल पा रहा है, चर्चा के लिए भी उस पर कल तक कोई समाधान नज़र नहीं आ रहा था। आख़िर बुधवार को मणिपुर पर बहस वाली समस्या समाप्त हो गई। बता दें कि कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया था, जिसे लोकसभा अध्यक्ष ओम बिडला ने मंज़ूर कर लिया है। संभवतया इस पर अगले सप्ताह लोकसभा में बहस होगी।

बता दें कि मानसून सत्र के शुरू होने के साथ ही संसद में हंगामा शुरू हो गया था। संसद में न तो कोई कुछ बोल पा रहा था और न ही कोई किसी की कुछ सुनने को तैयार था। वहीं विपक्ष लगातार माँग कर रहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद में आकर मणिपुर की हिंसा पर अपना बयान दें। परन्तु प्रधानमंत्री ने अपना बयान नहीं दिया l परन्तु अब अविश्वास प्रस्ताव पर विपक्ष और सत्ता पक्ष के ज़्यादातर नेता अपने बयान दे पाएँगे और प्रधानमंत्री भी इस चर्चा का जवाब दे पाएँगे।

दरअसल जब भी अविश्वास प्रस्ताव का नाम सुनते हैं तो इससे सरकार के गिरने का एहसास होता है। परन्तु इस बार ऐसा कुछ नहीं होने वाला है। सरकार के पास पर्याप्त बहुमत है और उसकी सेहत पर इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला है। हाँ, इस प्रस्ताव का इतना फ़ायदा ज़रूर है कि जो गतिरोध बना हुआ था, वो टूटेगा और सत्ता पक्ष – विपक्ष के नेता अपनी बात सदन में रख पाएँगे। मणिपुर पर भी और देश के बाक़ी मुद्दों या मसलों पर भी। जहां तक मणिपुर का सवाल है, भाजपा वहाँ मुख्यमंत्री को बदलना नहीं चाहती। कारण साफ़ है। झगड़ा मैतेई और कुकी आदिवासियों का है। दोनों में से किसी भी समुदाय का नया मुख्यमंत्री बनाया जाता है तो एक नया झगड़ा शुरू हो जाएगा। यही वजह है कि भाजपा मानती है कि जो है वो बना रहे तो ही ठीक रहेगा।

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