एकता सहगल मल्होत्रा- लेखिका

इतनी नफ़रत कैसे कर लेते हो ?
किस माटी के हो बने तुम ?
किस मां ने तुम जैसों को जनम दिया,
क्यों पैदा होते तुम्हें दफनाया नहीं?
कितनी जानें सांस ले पातीं जो तुम ना होते
यूं इज़्ज़त का जनाज़ा ना निकलता, जो तुम ना होते ।
कितनी मासूम बच्चियां घर आंगन में खिलखिला रही होती।
तुम्हारी हवस ने नोच डाला सब को।
वहशी दरिंदे, काश तुम्हारी मां ने बचपन में दो थप्पड़ कस के टिकाए होते तुम्हारे गाल पर,
अब देखो अत्याचारी का ठप्पा लग गया तुम्हारे भाल पर ।

आज न वो रोती, ना तेरे सितम झेलती
ना इतनी नफ़रत तुझ में होती ,ना उस में।
मोम की बनी थी , मां बाप के प्यार में पली थी
तेज़ाब डाल जला दिया, आह तक ना की उसने।
दहेज के लिए जिंदा दफना दिया, उफ़ तक ना की उसने।
सरे आम नंंगा कर जुलूस निकाला,
बर्बरता से उसकी हत्या कर छोटे छोटे टुकड़े कर कुत्तों को डाला।
इतनी नफ़रत ए ख़ुदा, तेरे ही बनाये बंदे में,
तुझे परम पिता का दर्ज़ा किसने दिया ?
तुझे नफ़रत दे के मिला क्या, अपनी ही बनाई ममता की मूरत को तबाह किया,
आज जब वो अपने हक़ के लिए उठाती आवाज़ ,बदनाम तूने उसे किया।
ए खुदा इस बेरुखी की वजह तो बता
इतनी नफ़रत दे कर, ये कैसा संसार हैं रचा?
बता ए खुदा ?
बता ना ए खुदा?

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