REPORTED AND WRITTEN BY DEEPIKA RAJPUT

अगर आपको भी मेरी तरह रहस्यमयी कहानी सुनना और उनको जानने की इच्छा रहती हैं तो आज की यह रहस्यमयी कहानी आपके लिए लेकर आई हूँ जो कि सत्य पर आधारित हैं l तो आइए बिना समय गवाए शुरू करते हैं l आपने कामाख्या देवी मंदिर के बारे में कभी सुना या पढ़ा तो जरूर होगा पर क्या आप उस भव्य मंदिर के पीछे की कहानी जानते हैं? अगर नहीं तो आज हम आपको बताएंगे असम के गुवाहाटी में स्थित कामाख्या देवी मंदिर के पीछे का रहस्य l

भारत के असम के गुवाहाटी में स्थित कामाख्या देवी मंदिर की बहुत अधिक मान्यता हैं l इसके पीछे भी एक वजह हैं जो आज हम आपको बताएंगे l कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से करीब 10 किमी दूर नीलांचल पहाड़ी पर स्थित है। यह असम के कामाख्या शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध हैं l यहां देवी को योनि रूप में पूजा जाता है। ये मंदिर तंत्र क्रियाओं के लिए प्रसिद्ध है। यहां योनि की पूजा के पीछे भी एक बड़ा रहस्य छुपा हैं जिसके बारे में आज हम आपको बताएंगे l

कहते हैं कि यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है। यह मंदिर तांत्रिकों का प्रमुख सिद्धपीठ है l कहते हैं मां कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है। ऐसा माना जाता हैं कि नीलांचल पर्वत पर माता की योनि गिरी थी, जिसके कारण यहां कामाख्या देवी शक्तिपीठ की स्थापना हुई l ऐसी मान्यता है कि माता की योनि नीचे गिरकर एक विग्रह में परिवर्तित हो गयी थी, जो आज भी मंदिर में विराजमान है और जिससे आज भी माता की वह प्रतिमा रजस्वला होती है l यहां कामाख्या देवी मंदिर में देवी सती की योनी की पूजा होती है। कामाख्या मंदिर का कपाट हर महीने के 3 दिन बंद रहता है। तीन दिन देवी सती के मासिक धर्म के चलते माता के दरबार में सफेद कपड़ा रखा जाता है। तीन दिन बाद कपड़े का रंग लाल हो जाता है, तो इसे भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है। यहां की ऐसी मान्यता हैं कि साल में 22 से 26 जून तक कामाख्या देवी मंदिर में अंबूवाची मेला लगता है जो कि खास होता है। इस समय मां कामाख्या मासिक धर्म में रहती हैं। यह मंदिर देवी कामाख्या के मासिक धर्म चक्र और उनकी दिव्य स्त्री शक्ति का उत्सव मनाता है। मां कामाख्या देवी मानसून के समय में रक्तस्राव करती है। हर साल अंबुबाची मेले के दौरान, मंदिर तीन दिनों के लिए बंद रहता है और इस दौरान पुरुषों को प्रवेश की अनुमति नहीं होती है ।

कहा जाता हैं कि इसके अलावा मां कामाख्या देवी को हर इच्छा पूरी करने वाली देवी के रूप में भी जाना जाता है। कहते हैं मां कामख्या अपने भक्तों की प्रार्थना व तपस्या से खुश होने पर उनकी हर मुराद पूरी करती है। इतना ही नहीं यहां हर किसी की मनोकामना सिद्ध होती है। यहां लोग संतान प्राप्ति के लिए भी मां कामाख्या देवी की पूजा करने आते हैं l ऐसा कहा जाता हैं कि कामाख्या मंदिर में पशु बलि की रस्म नित्य पूजा या दैनिक भक्ति का हिस्सा है, जिसमें मंदिर के दरवाजे खुलने से पहले प्रत्येक दिन देवी के लिए एक पशु की बलि दी जाती है।

अम्बुवाची पर्व का रहस्य

अगर बात करें कामाख्या मंदिर के अम्बुवाची पर्व कि तो पौराणिक शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक वर्ष जून माह (आषाढ़) में तिथि के अनुसार यह पर्व मनाया जाता है। यह अम्बूवाची पर्व भगवती (सती) का रजस्वला पर्व होता है। वर्ष में एक बार पड़ने वाला यह अम्बूवाची योग पर्व विश्व के सभी तांत्रिकों, मांत्रिकों एवं सिद्ध-पुरुषों के लिए एक वरदान है। यह एक प्रचलित धारणा है कि देवी कामाख्या मासिक धर्म चक्र के माध्यम से तीन दिनों के लिए गुजरती है, इन तीन दिनों के दौरान, कामाख्या मंदिर के द्वार श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिए जाते हैं। इस दौरान पुरुषों को प्रवेश की अनुमति नहीं होती है ।

कामाख्या मंदिर मे योनि (गर्भ) की पूजा का महत्त्व

कामाख्या मंदिर मे योनि की पूजा क्यों की जाती हैं इसके पीछे देवी सती और भगवान शिव की कथा का वो इतिहास हैं जो दक्ष प्रजापति के समय काल से जुड़ा हैं l पौराणिक कथा के अनुसार देवी सती प्रजापति दक्ष की पुत्री थी l सती का विवाह भगवान शिव से तो हो गया था परन्तु सती के पिता इस विवाह से खुश नहीं थे l इसलिए जब उन्होंने अपने राज्य में एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया तो उन्होंने वहां पूरे ब्राह्मण के देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया लेकिन इस यज्ञ में भगवान शिव और माता सती को कोई न्योता नहीं दिया गया l परन्तु जब माता सती को इस यज्ञ के बारे में पता चला कि उनके पिता ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया हैं जिसमे उन्हें न्योता नहीं दिया तो माता सती को बहुत दुख हुआ लेकिन फिर उन्होंने सोचा कि उन्हें इसके पीछे का कारण अपने पिता से जाकर पूछना चाहिए l इसलिए माता सती ने भगवान शिव से यज्ञ में जाने की ज़िद्द की पहले तो भगवान शिव ने माता सती को मना किया लेकिन माता सती की ज़िद्द को देखते हुए भगवान शिव ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी l परन्तु वह स्वंम नहीं गए उन्होंने माता सती को यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी l भगवान शिव का कहना था कि बिना निमंत्रण यज्ञ में जाना अपने आप में एक अपमान होता हैं l माता सती जब यज्ञ में पहुंची और वहां उन्होंने पूरे ब्राह्मण के देवी-देवताओं को देखा तो उन्हें बहुत दुख हुआ l उन्होंने अपने पिता से भगवान शिव और खुद को आमंत्रण ना करने का कारण पूछा तो उनके पिता ने यज्ञ में बैठे ब्राह्मण के सभी देवी-देवताओं के सामने माता सती और भगवान शिव को काफी बुरा भला कह दिया और भगवान शिव के लिए कई अपशब्द का भी प्रयोग किया l अपने पति भगवान शिव का अपमान माता सती सेह नहीं पाई और उन्होंने यज्ञ की ज्वाला में कूदकर आत्मदाह कर लिया l

जैसे ही भगवान शिव को इस अनहोनी के बारे में पता चला तो यज्ञ स्थल पर पहुंचे और माता सती के शव को उठाकर पूरे ब्राह्मण में गुस्से से तांडव करने लगे l पूरे ब्राह्मण में असंतुलन फ़ैल गया l पृथ्वी हिलने लगी l जैसे ही भगवान विष्णु ने ब्राह्मण और भगवान शिव की हालत देखी तो समझ गए कि भगवान शिव के क्रोध को शांत करने का एक ही तरीका हैं भगवान शिव के मां सती के प्रति मोह भंग करना l जिसके लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शव के इक्यावन टुकड़े कर दिए और यह टुकड़े पृथ्वी पर जाकर अलग-अलग भाग में गिरे l जिन्हे आज हम इक्यावन शक्तिपीठ के नाम से जानते हैं l जिनमे से कुछ भारत में और कुछ पाकिस्तान में मौजूद हैं l कामाख्या देवी मंदिर भी इन इक्यावन शक्तिपीठो में से एक हैं जहां माता सती की योनि गिरी थी l

पौराणिक कथा के अनुसार नीलाचल पहाड़ी में माता सती की योनि (गर्भ) गिर गई, और उस योनि (गर्भ) ने एक देवी का रूप धारण किया, जिसे देवी कामाख्या कहा जाता है। ऐसा कि आप जानते हैं कि योनी (गर्भ) वह जगह है जहां बच्चे को 9 महीने तक पाला जाता है और यहीं से बच्चा इस दुनिया में प्रवेश करता है। इसे ही सृष्टि की उत्पत्ति का कारण माना जाता है। इसी मान्यता के साथ भक्त यहां देवी सती की गिरी हुई योनि (गर्भ) की पूजा करने के लिए आते हैं जो देवी कामाख्या के रूप में हैं l

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