कल्पनाओं का संसार,
ना कोई आर ना पार ।
कोई कल्पना के सागर में खाली गोते खाए शेखचिल्ली बन जाए,
किसी की कल्पना उसे न्यूटन बनाए ।
कुछ लोग कल्पना में कवि बन गए ,
कुछ लोग कल्पना ही कल्पना में कूची के हाथों मोना लीसा जैसी
अमर कृति बना गए।
एक नेकचंद ने कल्पना कर के देश का सबसे बड़ा रॉक गार्डन बनाया ,
कचरे का सही इस्तेमाल कर शहर को सजाया ।
कल्पना से सत्य होने तक का सफर लंबा ज़रूर है,
इस सफर में आती मुश्किलें भी बहुत हैं।
दिल बाग बाग हो जाता है जब कल्पना साकार होती है।
यदि निश्चय ना हो दृढ़ तो सारी कल्पना बेकार होती है।
इला पचौरी