पिछले हफ्ते उत्तर प्रदेश में हुए एक सड़क हादसे में तीन लोगों को मौत हो गई. कार सवार तीनों लोगों की मौत के मामले में Google Maps का नाम भी आया है. दरअसल, इसके लिए गूगल मैप्स को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. रिपोर्ट्स की मानें, तो कार सवार तीनों लोग गूगल मैप्स का इस्तेमाल कर रहे थे. 

Maps ने उन्हें जो रास्ता दिखाया, वो एक अधूरे पुल का था. पुल का काम पूरा नहीं हुआ था, लेकिन उस पर कोई बैरिकेडिंग नहीं लगी थी. माना जा रहा है कि कार चालक को अधूरे पुल की कोई जानकारी नहीं थी, जिस वजह से ये हादसा हुआ, जिसमें तीनों लोगों की मौत हो गई. 

इस पूरे मामले में कई सवाल उठते हैं. पहले तो ये कि उस अधूरे पुल का रास्ता गूगल मैप्स पर कैसे आया. दूसरा ये कि उस रास्ते पर कोई बैरिकेडिंग क्यों नहीं थी. इसके अलावा कई दूसरे सवाल भी उठते हैं. इनके लिए हमने जीओस्पेशियल एक्सपर्ट और Arahas के CEO सौरभ राय से बातचीत की. उन्होंने इस पूरे विषय को विस्तार से समझाया है. 

मैप्स से गलतियां क्यों होती हैं?

गूगल मैप्स या दूसरी मैपिंग टेक्नोलॉजी में गलतियों के पीछे कई कारण हो सकते हैं. इन टेक्नोलॉजीज का आधार सैटेलाइट इमेज, ट्रैफिक सेंसर्स, LiDAR-आधारित टेरेस्ट्रियल कैमरा मैपिंग और यूजर के डिवाइस से प्राप्त डेटा होता है.

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अगर इनमें से किसी स्रोत में त्रुटि हो या डेटा अपडेट ना हुआ हो, तो गलती होने की संभावना रहती है. LiDAR जैसी टेक्नोलॉजी सटीक परिणाम प्रदान करती हैं, लेकिन इसके लिए लगातार अपडेट और क्वालिटी कंट्रोल की जरूरत होती है.

मैपिंग टेक्नोलॉजी में कौन-सी खामी जानलेवा बन सकती है?

पुराना या गलत डेटा: सड़कों में बदलाव, नए निर्माण, या बंद रास्तों की जानकारी अगर सही समय पर अपडेट ना हो, तो यह यूजर्स को गुमराह कर सकती हैं.

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क्राउडसोर्स्ड डेटा : गूगल मैप्स और अन्य मैपिंग सेवाएं यूजर्स से डेटा इकट्ठा करती हैं. हालांकि, अगर इस डेटा की ठीक से जांच ना हो, तो यह गलत सूचनाओं का कारण बन सकता है.

रीयल-टाइम घटनाओं की सीमाएं: खराब मौसम, दुर्घटनाएं या आपातकालीन स्थिति में यह प्लेटफॉर्म हमेशा सटीक जानकारी देने में सक्षम नहीं होते हैं.

अत्यधिक निर्भरता: कई बार, यूजर्स टेक्नोलॉजी पर जरूरत से ज्यादा निर्भर हो जाते हैं और अपनी समझदारी का इस्तेमाल नहीं करते. यह जानलेवा साबित हो सकता है, खासकर पहाड़ी, दूरदराज़ या खतरनाक मोड़ वाले रास्तों पर. 

गूगल या दूसरी मैपिंग सर्विस यूजर्स को रास्ता कैसे दिखाती हैं?

डेटा कलेक्शन और अपडेट: गूगल और अन्य कंपनियां सैटेलाइट इमेज, ट्रैफिक सेंसर और LiDAR-आधारित टेरेस्ट्रियल कैमरा मैपिंग का इस्तेमाल करके डेटा इकट्ठा करती हैं. यह डेटा लगातार अपडेट होता है.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI): AI का उपयोग ट्रैफिक की स्थिति, दूरी और रीयल-टाइम डेटा का विश्लेषण करने के लिए किया जाता है, जिससे यूजर्स को सबसे तेज और सुरक्षित रास्ता दिखाया जा सके.

क्राउडसोर्स्ड डिटेल्स: लाखों यूजर्स द्वारा दिया गया फीडबैक और रिपोर्टिंग इन मैप्स को सटीक बनाने में मदद करती है.

CORS और रीयल-टाइम रेफरेंस अपडेट्स: जापान जैसे देशों में, CORS (Repeatedly Working Reference Station) और सैटेलाइट-आधारित रीयल-टाइम अपडेट्स का उपयोग किया जाता है, जो बदलाव, दुर्घटनाओं, और अन्य घटनाओं की जानकारी तुरंत प्रदान कर सकते हैं. इस प्रकार की टेक्नोलॉजी आने वाले समय में गूगल मैप्स और अन्य प्लेटफॉर्म्स को और प्रभावी बना सकती हैं.

ट्रैफिक जानकारी: ट्रैफिक से संबंधित डेटा- जैसे जाम, दुर्घटनाएं और ट्रैफिक स्पीड, रीयल-टाइम ड्राइविंग निर्देशों को सटीक और उपयोगी बनाने में अहम भूमिका निभा सकता है.

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