चीन के प्रेम ने मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू को स्वयं के देश के हितों का ही शत्रु बना डाला हैं l वह अपने ही देश के हितों के ‘भस्मासुर’ बन बैठे हैं l हमेशा से ही भारत और मालदीव के बीच बेहद ही अच्छे ताल्लुकात रहे हैं, परन्तु वहीँ दूसरी तरफ चीन मालदीव को झूठे सपने दिखाकर हिंद-प्रशांत में अपनी आक्रामकता को बढ़ाना चाहता है।
बता दें कि भारत के दक्षिणी छोर पर स्थित द्विपीय देश मालदीव रणनीतिक के रूप में अपनी बेहद ही प्रभावशाली भूमिका रखता हैं l मालदीव हिंद महासागर के व्यस्ततम समुद्री मार्ग के किनारे पर स्थित है, इसके कारण चीन 80 प्रतिशत तेल का आयात करता है। चीन अब बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में मालदीव को शामिल करके उसे पाकिस्तान की तरह ही कर्ज के जाल में फंसाना चाहता है। मीडिया रिपोर्ट्स विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, मालदीव के पास चीन का 1.37 अरब डॉलर का कर्ज है, जो उसके कुल कर्ज का 20 प्रतिशत है।
चीन करता है मालदीव की संप्रभुता का पूरा समर्थन : मुइज्जू
बता दें कि मुइज्जू चीन यात्रा की खुमारी में डूबे हुए बीजिंग के साथ अपने देश के रणनीतक संबंधों की तारीफ करते हुए कहा कि दोनों एक-दूसरे का सम्मान करते हैं। उन्होंने कहा कि मालदीव की संप्रभुता का चीन पूरा समर्थन करता हैं l 1972 में राजनयिक संबंध स्थापित करने के बाद से चीन ने मालदीव के विकास में सहायता प्रदान की है। चीन की बीआरआई द्विपक्षीय संबंधों को एक नए स्तर पर ले गई है।
भारत कराता हैं चावल, सब्जी व दवा उपलब्ध
बता दें कि भारत मालदीव के निवासियों के लिए किस प्रकार मददगार है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वहां के लोग चावल, सब्जी व दवा से लेकर चिकित्सा व मानवीय मदद के लिए नई दिल्ली पर निर्भर हैं। इतना ही नहीं भारत ने साल 1998 में तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल गयूम का तख्तापलट करने के प्रयास को विफल करने के लिए सेना भी भेजी थी। हालांकि, इसके फौरन बाद सैनिकों को वापस बुला लिया गया था।
भारत में फैली चीन के इशारे पर विरोधी हवा
बता दें कि शायद ही कोई मालदीववासी होगा जो कि भारतीय मदद के महत्व से मुंह मोड़े, परन्तु मालदीव में पिछले कुछ समय से भारत विरोधी हवा फैलाई गई। चीन के इशारों पर ऐसा विरोधी प्रचार किया गया कि भारत मालदीव की घरेलू राजनीति में दखल देता है। इतना ही नहीं मुइज्जू ने तो राष्ट्रपति चुनाव भी इसी दुष्प्रचार के दम पर जीता। चुनाव के दौरान उन्होंने मालदीव की संप्रभुता को मुद्दा बनाते हुए भारतीय सेना को वापस भेजने का वादा किया था। बता दें कि 70 भारतीय सैनिकों की वापसी के लिए उन्होंने 15 मार्च की अंतिम तिथि तय कर दी है।