नई दिल्ली- हमने जितने भी शिकायत की है, सभी में गबन साबित हो रहा है। गबन साबित होने के बाद भी एफ आई आर कराने की बजाय वर्तमान प्रबंधन उनको अभयदान दे रहा है।
सर्व हरियाणा ग्रामीण बैंक के अम्बाला रीजन में बैंक बिजनस की आड़ में फ़र्जी बिलों व बेतुके खर्चों से लाखों रुपये का फ्राड। पूर्व अध्यक्ष प्रवीन जैन और महाप्रबंधक फ.सी सिंगला ने सभी क्षेत्रीय कार्यालय में फर्जी बिल बनाकर करोड़ों रुपए का इकट्ठा किया वर्ष 2014 की रेवेन्यू ऑडिट में मामला सामने आया तो सभी रीजन की जांच कराने की बजाय मामले को ठंडे बस्ते में डाल दीया सभी क्षेत्रीय की सही ढंग से जांच होती तो करोड़ों रुपए के फर्जी बिल पकड़े जाते हैं। एक क्षेत्रीय कार्यालय अंबाला में लगभग 40 लाख के फर्जी बिल मिले हैं।
सर्व हरियाणा ग्रामीण बैंक की स्थापना (हरियाणा ग्रामीण बैंक व गुड़गांव ग्रामीण बैंक का विलय ) से ही यहाँ भर्ष्टाचार का बोलबाला रहा है। बैंक विलय के आरम्भ से ही यहां ऐसे चेयरमैन रहे हैं जिनकी परस्ती में न केवल भरष्टाचार अपने चरम पर पहुँचा बल्कि भ्रष्ट अधिकारियों को पूरा संरक्षण मिला। भ्रष्टाचारियों के हौसले इतने बुलन्द हो गए कि वे कुछ भी करें, उनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं होने दिया जाएगा।
एक डेढ़ साल पहले वर्तमान चेयरमैन के आने से व उनकी कार्यशैली से लगा था कि बैंक में व्याप्त भ्र्ष्टाचार को कुछ लगाम लगेगी तथा भरष्ट अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई होगी। परन्तु लगता है भरष्टाचारियों तन्त्र वर्तमान चेयरमैन पर भी हावी हो गया है और वे उनको बचाने को विवश हैं।
मामला वर्ष 2014 में अंबाला क्षेत्रीय कार्यालय की ऑडिट में उजागर हुए फ्राड बिलों से जुड़ा है, जिसकी पहली रिपोर्टिंग ऑडिट में ही हुई जिसमें ऑडिट करने वाले अधिकारी ने विजीलेंस अधिकारी से पूरे मामले की गहन जांच की सिफारिश भी की थी।
दूसरी मर्तबा यह मामला जनवरी 2018 में प्रकाश में आया जब एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा DGP विजीलेंस को एक शिकायत की गई जिसमें इस विषय पर मुख्यतः प्रकाश डाला गया।पहले तो तत्कालीन चेयरमैन डा. एम.पी.सिंह ने दोषी अधिकारियों से मोटी रिश्वत लेकर उन्हें कोई कार्यवाही न होने का न केवल भरोसा दिलवाया बल्कि रिकार्ड भी खुर्द-बुर्द करवा दिया गया। जून 2018 में नंदा जी ने बैंक के चेयरमैन पद का कार्यभार संभाला तो उन्होंने भी भ्रष्ट अधिकारियों पर कार्यवाही करने की बजाय डा.एम.पी.सिंह की भांति मोटे पैसे लेकर मामलों को ठंडे बस्ते में डालने की नीति का ही अनुसरण किया। भला हो एक ईमानदार महाप्रबंधक का जिन्होंने अपना फर्ज समझा व जनवरी 2020 में विजीलेंस अधिकारी को इस मामले की जांच सौंपी।
विजीलेंस अधिकारी की रिपोर्ट संलग्न है जिसमें फ्राड के निम्नलिखित तौर तरीके उजागर हुये।सभी फर्म जिनके द्वारा बिल बनवाए गए हैं, फर्जी हैं। अतः जाली बिल बनवा कर बैंक को चूना लगाया गया है।
बैंक बिजनेस बढ़ाने के नाम पर जिन मीटिंग्स का हवाला देते हुए सैंकड़ों लोगों को होटलों में खाना खिलाने के जो बिल बनवाए गये हैं, ऐसी मीटिंग्स हुई ही नहीं। और न ही उन मीटिंग्स का कोई रिकार्ड मिला है।
उपर्युक्त वर्णित रिपोर्ट के पेज नं 8 पर इस बात का जिक्र है कि रीजनल मैनेजर ने पत्र संख्या Ref/RO/I&A/18, 874 दिनांक 17/03/2018 के माध्यम से रिकार्ड को dispose off किया हुआ बतलाया है। यह बैंक की पुराने रिकॉर्ड को dispose off करने संबंधी नियमों का उल्लंघन है क्योंकि बैंक में 8/10 वर्षों तक रिकॉर्ड रखना अनिवार्य है। एवं ऑडिट में objection लगने या शिकायत होने पर रिकार्ड 10 साल के बाद भी dispose off 10 नहीं किया जा सकता। अतः बदनीयती से जिन्होंने रिकार्ड खुर्द-बुर्द किया है उनके खिलाफ भी करवाई बनती है।
कम से कम पांच-छः वर्ष से ज्यादा पुराने मामले की हालिया जांच जो कि केवल तत्कालीन रीजनल मैनेजर श्री अनिल के कार्यकाल से सम्बंधित ही कि गयी,यह संकेत मिलते हैं कि अम्बाला रीजनल ऑफिस में इस फर्जी वाड़ा काफी समय यानी पिछले रीजनल मैनेजर के समय से ही चलता आ रहा है। श्री अनिल कुमार पूर्व रीजनल मैनेजर अम्बाला ने अपनी चार्ज शीट/ शो काज नोटिस के जवाब में भी स्पस्ट लिखा है कि ऐसे खर्चे उससे पूर्व रीजनल मैनेजर के समय (2012 )से ही होते आ रहे हैं, और लाखों रुपये के बिल उन्हीं फर्मों व होटलों से बनवाए गए जिन्हे फ़र्जी बता कर उसे (अनिल कुमार को)चार्जशीट किया गया है।
सूत्र यह भी बताते हैं कि पूर्व रीजनल मैनेजर से सम्बंधित खर्चों व बिलो की फ़ाइल अम्बाला रीजनल ऑफिस से गायब करा दी गयी या रिकॉर्ड नष्ट करा दिया गया है और रही सही कसर उनको फिर से अम्बाला रीजन का रीजनल मैनेजर बना कर कर दी गयी ताकि मामले को जड़ से मिटा दिया जाय व कोई सबूत बाकी नही छोड़ा जाए।
परन्तु यदि प्रबन्धन की नीयत में कोई खोट नहीं है तो वर्तमान रीजनल मैनेजर को पद से हटाकर निष्पक्ष जांच की जाए तो सभी तथ्य सामने आ सकते हैं।
साफ है कि रीजनल आफिस अंबाला ने यह घोटाला जानबूझकर किया व दो चेयरमैन एम.पी.सिंह व अरुण कुमार नंदा ने दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने की बजाय मामले को रफा दफा करने का प्रयास किया। हमारी मांग है कि फर्जी बिल बनवा कर सरकारी खजाने का गबन करने, सरकारी रिकार्ड को खुर्द-बुर्द करने के मामले में दोषी अधिकारियों व मामले की जानकारी होने पर उन्हें आपराधिक संरक्षण देने पर दोनों अधिकारियों पूर्व चेयरमैन एम.पी.सिंह व वर्तमान चेयरमैन अरुण कुमार नंदा के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करवा कर इन्हें जेल भिजवाया जाये ।
अम्बाला रीजन 2012 के सभी खर्चो की तथा अन्य रीजनल आफिसेस में भी इस तरह के खर्चो की जांच करवाई जाये।
फर्जी बिल बनाकर पैसा निकालने के मामले में उन सभी अधिकारियों को जो इस मामले में लिप्त हैं उन पर क्रिमिनल केस बनाकर सलाखों के पीछे भेजना चाहिए।