नई दिल्ली : हमारे महान पूर्वज हमारे लिए जो धरोहर छोड़ गए हैं वह महज पत्थर के स्मारकों में उत्कीर्ण नहीं है, बल्कि कुछ ऐसा है जो सहज ही दूसरों के जीवन के ताने-बाने में बुना गया है। जब आप किसी ऐतिहासिक स्मारक की यात्रा करते हैं तो वहाँ आपको किसी आत्मा की मौजूदगी का एहसास होता है जो आपसे संवाद करना चाहती है, अपने जर्रे-जर्रे, रेशे-रेशे से कुछ प्रकट करना चाहती है।
और जो कुछ आपको मालूम हो पाता है वही हमारी समृद्ध और कालातीत भारतीय विरासत की विशाल धरोहर है। जैसा कि प्रसिद्ध कलाकार (चित्रकार) दीपाली जैन कहती हैं : “हमारी विरासत हमारे जीवन के अनुभवों, विश्वासों, मूल्यों और परंपराओं का कुल जमा योग है जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी अंतरित होती चली आ रही है। आने वाली पीढ़ियाँ इसी के माध्यम से आपको याद रखेंगी – इसलिए इसे कुछ ऐसा बनाएँ जो याद रखने लायक हो। उनका मानना है कि हर चीज इतिहास से प्रेरित होती है। अपनी इसी सोच से उत्प्रेरित होकर, दीपाली बनारस, जोधपुर और जैसलमेर शहरों की प्राचीन धरोहरों से प्रेरित एक कला-प्रदर्शनी “विरासत“ का आयोजन कर रही हैं। इस कला-प्रदर्शनी को 19 से 22 अप्रैल तक प्रतिदिन दोपहर 12 बजे से शाम 6 बजे तक लोधी रोड स्थित इंडिया हैबिटेट सेंटर के कन्वेंशन फ़ोयर में देखा जा सकता है।
दीपाली ने बताया कि इनमें से अधिकांश पेंटिंग 2020-2022 के दौरान बनाई गई हैं। साथ ही यह भी बताया कि “भारतीय वास्तुकला के साथ मेरी कला-यात्रा वर्ष 2015 में शुरू हुई, जब मेरे बेटे ने जोधपुर की यात्रा की और मुझे वहाँ की कुछ मनमोहक तस्वीरें भेजीं। तब मुझे अहसास हुआ कि हम कितने भाग्यशाली हैं जो हमें इतनी शानदार विरासत सौंपी गई है। इस अहसास के साथ, मुझे लगा कि इस समृद्ध देश के नागरिक के रूप में मैंने जो विरासत प्राप्त की है उसमें अपनी तरफ से नया कुछ जोड़ने के लिए वास्तव में कुछ ठोस और अभिनव प्रयास करने की आवश्यकता है। उन्होंने आगे कहा : “पेंटिंग शुरू करने से पहले, मैं उन शहरों का शोध करती हूँ जिनका मैं कायाकल्प करने जा रही हूँ।
ये सभी प्राचीन शहर हैं, और इनमें से हरेक के पास बताने के लिए अपनी एक दिलचस्प कहानी है। मेरे शोध ने मुझे यह समझने में मदद की कि जोधपुर शहर में गहरे नीले रंग (इंडिगो) के उपयोग की क्या वजह रही है। जाति व्यवस्था इसका एक कारण हो सकती है, और दूसरी यह कि वे अपने घरों को ठंडा रखना चाहते थे। बनारस के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यह दुनिया के प्राचीनतम शहरों में से एक है।
किंवदंती है कि इस शहर की स्थापना स्वयं भगवान शिव ने की थी, और यह वाराणसी में ही हुआ कि भगवान शिव देवी पार्वती के साथ खड़े हुए, जब समय ने पहली बार अपनी गति आरंभ की। जैसलमेर की कहानियाँ थोड़ी और हाल की हैं – और जब मैंने शोध किया तो पता चला कि कठोर सूखे की स्थिति के बावजूद यह शहर कैसे जीवित रहा, क्योंकि यह समृद्ध जैन व्यापारियों की संपत्ति पर बनाया गया था जिन्होंने ‘रेशम मार्ग’ पर कारोबार करते हुए बेशुमार धन कमाया। वे कहती हैं : “भारतीय वास्तुकला और इसकी विविधता के प्रति मेरे अंतस में जो प्रेम है उसी ने मुझे शहरों को चित्रित करने के लिए कला का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया। यहीं से मेरी यात्रा आरंभ हुई।
मैंने चीनी चित्रकला के तत्वों और ललित कला कौशल का जो फन सीखा उनका उपयोग करते हुए सहज ब्रश स्ट्रोक में जटिल संरचनाओं को सरल बनाने में महारत हासिल की और रंगों और आकृतियों के माध्यम से शहर के सार को पकड़ने की कोशिश करते हुए जोधपुर, बनारस, जैसलमेर और उदयपुर जैसे भारतीय शहरों का कायाकल्प करने की अपनी यात्रा आरंभ की।
आरंभ में मैंने अपनी भावनाओं को चित्रित करने के लिए कला का उपयोग किया, क्योंकि उस वक्त मैं अपने जीवन में एक कठिन दौर का सामना कर रही थी और मैंने पाया कि कला निस्संदेह एक शक्तिशाली माध्यम है जो मेरे द्वारा बनाए गए शहरों के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में सक्षम है।” दीपाली जैसे-जैसे कला क्षेत्र में निष्णात हो रही हैं, अमूर्तता की दिशा में अग्रसर हो रही हैं। वे आगे कहती हैं : “मेरी व्यक्तिगत यात्रा ने मुझे मानसिक स्वास्थ्य, शिक्षा और कला के अंतर्संबंधों को सही मायने में समझने में मदद की है।
मार्च 2017 से, मैं दिल्ली के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में कीमोथेरेपी रोगियों के लिए एक कला-चिकित्सक के रूप में स्वयंसेवक के रूप में कार्यरत हूँ और इसके पीछे मेरा यह मानना है कि हमें नये मूल्य स्थापित करने चाहिए और समाज ने जो कुछ भी हमें दिया है उसे और बेहतर बनाकर लौटाना चाहिए। इसके अलावा, मैं गुरुग्राम में अपने स्टूडियो में नियमित कला-सत्र भी आयोजित करती हूँ और सैकड़ों छात्रों को पढ़ा चुकी हूँ। मैंने अपने जीवन में कला के प्रभाव को अच्छी तरह से अनुभूत किया है कि इसके जरिये मैं कैसे अपनी मानसिक और शारीरिक चुनौतियों पर विजय प्राप्त करने में सक्षम हो पाई हूँ। मैं मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य समस्याओं पर विजय पाने में सक्षम होने के लिए कला का एक उपकरण के रूप में प्रसार करना चाहती हूँ, और साथ ही चाहती हूँ कि इसका उपयोग कर लोग अपने जीवन में दैनिक तनावों से लड़ने में सक्षम बनें। आज अलग-अलग उम्र के मेरे लगभग 40 छात्र हैं, जो मुझसे कला-साधना का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं।