मैं हूं आज की नारी, मैं कतई नहीं बेचारी – एकता सहगल

पैदा होते है मेरे वजूद को नकारा जाता है,
जैसे जैसे बड़ी होती हूं, कई नामों से जाना जाता है ।
कुछ कहते अपवित्र, कुछ कहते तू बोझा है ।
सड़क पर निकलूं तो घूर घूर कर कपड़े पहने हुए भी मुझे नग्नता का अहसास दिलाते हैं,
सच कहूं तो बाहर निकलते हुए कदम मेरे थर्राते हैं।
घर में दादी ,नानी पढ़ने नहीं देती,
घर में बैठो, काम करो …क्यों मुझे वो आगे बढ़ने नहीं देती ।
ये ज़माना जानता नहीं, कि यह व्यवहार मुझे और मजबूत बनाता है,
मुझे मेरी मंजिल के और करीब ले जाता है ।
मेरी सोच मेरी ताक़त,
मेरी काबिलियत मेरी पहचान,
मेरी सहनशीलता मेरा गुमान,।मेरी चंचलता मेरे पंख ,
देखो क्या नहीं है मुझमें ,
मैं दुर्गा ,सरस्वती और लक्ष्मी का रूप हूं,
मैं ही तो कालिका और चंडी का स्वरूप हूं।
मैं हूं आज की नारी,
समझती हूं अपनी जिम्मेदारी
नारी सशक्तिकरण का ढोल मैं नहीं पीटती,
काम करती, आगे बढ़ती चलती हूं।
ईर्ष्या नहीं सहयोग में उन्नति है मेरी ,
सबकी प्रगति में ही छिपी है प्रगति मेरी ।
मैं कतई नहीं बेचारी,
मैं हूं आज की नारी।
मैं हूं आज की नारी ।

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