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शिक्षक दिवस बनाने के पीछे का रोचक इतिहास.

गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः इस श्लोक का अर्थ ये है की गुरु ही ब्रम्हा है गुरु ही विष्णु है गुरु ही शिव है और गुरु ही परब्रह्म है , इन गुरुओं को मेरा सादर परनाम। विद्यार्थी के जीवन में गुरु की बहुत बड़ी भूमिका होती हैं। गुरु शिक्षा के माध्यम से समाज में उनको एक पहचान दिलाता है। शिक्षक दिवस केवल एक दिन ही नहीं बल्कि उन सभी शिक्षकों को सम्मान देनें का दिन है जिन्होंने कड़ी मेहनत और समर्पण से विद्यार्थीयों को पढ़ाया और उनका भविष्य उज्वल बनाया। हमें ये भी याद रखना चाहिए की शिक्षक की डाट में भी उनका प्यार छिपा होता हैं जो विद्यार्थी को कभी भी गलत रास्ते पर जाने से रोकता है और हमेशा सही मार्गदर्शन प्रदान करता हैं।

शिक्षक दिवस क्यों मानाया जाता है

शिक्षक दिवस मानाने की परंपरा डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती से शुरू हुई। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु में हुआ था। वे भारतीय दर्शनशास्त्र में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे औरपश्चिमी देशों में भी भारतीय दर्शन की महत्ता को स्थापित किया। उनकी विद्वत्ता और शिक्षण शैली के कारण ही वे छात्रों के बीच लोकप्रिय थे। उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भारतीय दर्शन पर भी व्याख्यान दिया और साथ ही उन्होंने कई पुस्तकों की भी रचना की। उनके योगदान को देखते हुए सन 1954 में उनको भारत रत्न से सम्मानित भी किया गया। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान शिक्षक थे और साथ ही वह भारत के पहले उपराष्ट्रपति भी रहे। उन्होंने माना कि समाज के विकास को आगे बढ़ाने के लिए शिक्षा ही एक महत्वपूर्ण माध्यम है जो समाज को एक नई दिशा प्रदान करता है ।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपनी पढ़ाई K . V हाई स्कूल से की फिर वह 1896 वह तिरुपति चले गए जहाँ उन्होंने अपनी पढ़ाई हर्मंसबर्ग इवेंजेलिकल लूथरन मिशन स्कूल से पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई के लिए वालजापेट चले गए। उन्होंने अपनी राजनितिक कैरियर की शुरूवात देर से की स्वंत्रता के बाद किया था बाद 1946 से 1952 तक भारत के राष्ट्रपति बने और भारत का प्रतिनिधित्व भी किया।

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