एक बक्से में ज़िंदगी- इला पचौरी फाउंडर – माय लिटिल ग्रीन्स

सिर्फ एक बक्से में ज़िंदगी बसर करते हैं,
हां। मेरे फौजी भाई यूं ही सफ़र करते हैं।

हरे टीन के बक्से में मां के हाथों का बुना हुआ शाल, पिताजी के खत ,
बीवी की महकती चुनरी और बिटिया का फोटो देख देख के सबर करते हैं।
यारों की तस्वीरें,कुछ ज़रूरी कागज़ात
सब कुछ इसी बक्से में संभाल कर ज़िंदगी बसर करते हैं।

हम महफूज़ सोए रहते हैं, नर्म गद्दों और लिहाफों में,
फौज के सिपाही सख़्त ज़मीं पे रात गुज़ार देते हैं ।
एक तखत, या बक्से पर लेटे खुली आंखों से सो जाते हैं।

हम समतल ज़मीं पर चलते हुए थक जाते हैं,
ये सख़्त जां सिपाही , हिमालय की बर्फीली छाती से का टकराते हैं।
रेगिस्तान की गर्म रेत पर चल कर कितने अरमान झुलसाते हैं।

हम भर पेट तीनों वक्त खा लेते हैं,
हमारे सेनानी महीनों तक घर के दाल चावल, चिवड़े लड्डू के लिए तरस जाते हैं।
सरहद की निगरानी भूखे पेट भी निभाते हैं।

हम अपने बच्चो को सीने से लगाए रहते हैं,
ये फौजी पिता , अपनें बच्चों को एक नज़र देखने के लिए तरस जाते हैं।
घर का हर त्योहार बिन देखे ही रह जाते हैं।

हमारी तमाम गृहस्थी, घर बार, बाल बच्चे सब सुरक्षित रहें,
एक बक्से में ज़िंदगी समेट अपने घरों से दूर , ये सरहदों पर जा बैठते हैं।

आओ इन्हें सलाम करें, आओ इनका एहतराम करें।
सलामत रहें हमारे फौजी ,सलामत हमारी आवाम रहे।
जय हिंद ।

इला पचौरी

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