यहां दहन नहीं बल्कि लंकापति रावण की होती हैं पूजा अर्चना, साल में एक बार खुलता हैं यह मंदिर

यहां दहन नहीं बल्कि लंकापति रावण की होती हैं पूजा अर्चना, साल में एक बार खुलता हैं यह मंदिर

देशभर में आज दशहरा का त्योहार मनाया जा रहा है। जहां सभी लोग आज रावण दहन करेंगे वहीं दूसरी तरफ कानपुर में लंकापति रावण का मंदिर है l जहां भक्त लंकेश्वर की पूजा-आराधना करते हैं l यह मंदिर साल में सिर्फ एक ही बार विजयदशमी के दिन खोला जाता है l

बता दें कि एक तरफ आज विजयदशमी के मौके पर देशभर में रावण के पुतले का दहन किया जाएगा l वहीं कुछ ऐसी जगहें भी हैं जहां रावण की पूजा आराधना कर अपनी मनोकामना मांगी जाती है l आज हम आपको कुछ इसी तरह की परंपरा वाली जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं l जहां लोग लंकेश्वर की पूजा आराधना कर अपना मनोरथ मांगते हैं l विजयदशमी के त्यौहार को बुराई पर अच्छाई और असत्य पर सत्य की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है l

आज ही के दिन भगवान राम ने रावण को हराया था। इसके बाद से इस दिन को असत्य पर सत्य की जीत का नाम देकर हर साल हिंदू लोग दशहरे के रूप में पर्व मनाते हैं। रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतलों को फूंका जाता है। लेकिन उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक ऐसा मंदिर भी है जो विजयदशमी के दिन ही खुलता है और यहां पूरे विधि विधान से रावण का दुग्ध स्नान और अभिषेक कर श्रृंगार किया जाता है। उसके बाद पूजन के साथ रावण की स्तुति पर आरती की जाती है।

साल में एक बार खुलता है यह मंदिर

बता दें उत्तर प्रदेश के कानपुर के शिवाला में स्थित दशानन मंदिर में दशहरा के दिन सुबह से भक्त रावण की पूजा करने के लिए पहुंचते हैं l यह मंदिर सैकड़ों साल पुराना है और खास बात यह है कि इस मंदिर को सिर्फ एक ही बार खोला जाता है l विजयदशमी के दिन ही इस मंदिर को खोला जाता है l दशहरा के दिन इस मंदिर को खोलते हैं और दशहरा के दिन रावण की पूजा करते हैं और फिर शाम को पुतला जलाने के बाद हम इस मंदिर को बंद कर देते हैं l यह केवल दशहरे के दिन खुलता है l हम उनके ज्ञान के लिए उनकी पूजा करते हैं l रावण के उपासक यहां सुबह से पहुंचकर पूजा आराधना करने में लग जाते हैं l दशानन मंदिर में शक्ति के प्रतीक के रूप में रावण की पूजा होती है l विजयदशमी के दिन सुबह आठ बजे मंदिर के कपाट खोले गए और रावण की प्रतिमा का साज श्रृंगार किया गयाl इसके बाद आरती हुई. इस मंदिर की स्थापना सन 1890 में गुरु प्रसाद शुक्ल द्वारा की गई थी l जानकारी के लिए बता दें कानपुर में रावण का 155 साल पुराना मंदिर है जो 1868 में बनाया था और उसके बाद से यहां निरंतर रावण की पूजा होती है। लोग हर साल इस मंदिर के खुलने का इंतजार करते हैं। मंदिर खुलने पर यहां रावण की पूजा अर्चना बड़े धूमधाम से की जाती है। कानपुर स्थित रावण के इस मंदिर की मान्यता है कि यहां मन्नत मांगने से लोगों की मन की मुरादें भी पूरी होती हैं ओर लोग इसलिए यहां दशहरे पर रावण की विशेष पूजा करते हैं। यहां दशहरे के दिन रावण का जन्मदिन मनाया जाता है।

कानपुर में होती है रावण की पूजा

बता दें कानपुर में रावण मंदिर के पुजारियों और शास्त्र विद्वानों का मानना है कि रावण को जब भगवान राम ने युद्ध में जब मारा था तो उनका ब्रह्मा बाण रावण की नाभि में लगा था। बाण लगने के बाद और रावण के धराशाही होने के बीच कालच्रक ने जो रचना की उसने रावण को पूजने योग्य बना दिया। यह वह समय था जब राम ने लक्ष्मण को कहा था कि रावण के पैरों की तरफ खड़े होकर सम्मानपूर्वक नीति ज्ञान की शिक्षा ग्रहण करो। क्योंकि धरातल पर न कभी रावण जैसा कोई ज्ञानी पैदा हुआ है और न ही कभी होगा। रावण का यही स्वरूप पूजनीय है और इसी स्वरूप को ध्यान में रखकर कानपुर में रावण के पूजन का विधान है।

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