फ़िल्म रिव्यू — धुरंधर
रेटिंग: ★★★★☆ (4/5)
तीखे संवाद, खून-खराबा और अद्भुत अभिनय से भरपूर ‘धुरंधर’ निर्देशक आदित्य धर का एक महत्वाकांक्षी एक्शन–ड्रामा है, जिसकी 3 घंटे 32 मिनट की लंबाई और राजनीतिक पृष्ठभूमि इसे बड़े कैनवास का सिनेमाई अनुभव बनाती है। रणवीर सिंह अपने करियर के सबसे ऊर्जावान और तीखे अवतार में नज़र आते हैं—जंगली, खतरनाक पर संवेदनशील हमज़ा अली मज़ारी उर्फ़ जसकीरत सिंह रंगीली के रूप में। कहानी 1999 के कंधार अपहरण कांड के दौर से शुरू होकर पाकिस्तान के ल्यारी गैंगस्टर, राजनीति और ISI के गठजोड़ को बेहद यथार्थवादी ढंग से पेश करती है। वहीं आर. माधवन द्वारा शुरू किया गया ‘प्रोजेक्ट धुरंधर’ पूरी फिल्म में रहस्य और दांव-पेंच बनाए रखता है। अक्षय खन्ना राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं वाले गैंगस्टर के रूप में दमदार हैं, संजय दत्त और अर्जुन रामपाल सीमित स्क्रीन टाइम में प्रभावशाली प्रदर्शन देते हैं। शाश्वत सचदेव का बैकग्राउंड स्कोर, कराची के वास्तविक चित्रण वाला कैमरा वर्क और पुराने पाकिस्तानी पॉप–ग़ज़लों का चतुर उपयोग फिल्म की तकनीकी मजबूती बढ़ाते हैं।

हालाँकि फिल्म का दूसरा भाग कुछ जगह ट्रैक से भटकता महसूस होता है और दूसरी किस्त (19 मार्च 2026) के कई दृश्य पहले ही दिखा देने से रोमांच थोड़ा कम होता है। हिंसा के कई क्रूर सीन कमज़ोर दिल दर्शकों को असहज कर सकते हैं, विशेषकर मेजर इकबाल वाला टॉर्चर सीक्वेंस। फिर भी, राजनीति, जासूसी, गैंगवार और राष्ट्रीय सुरक्षा के टकराव को बड़े पैमाने पर प्रस्तुत करती ‘धुरंधर’ एक तेज़, हिंसक और रोमांचकारी सिनेमाई अनुभव है—ऐसी फिल्म जिसे थिएटर में मिस नहीं किया जाना चाहिए। अंत में छोड़े गए सवाल—क्या भाग 2 कहानी को और ताकत देगा? क्या रणवीर सिंह यही तीव्रता बनाए रख पाएंगे?—दर्शकों में अगले अध्याय को लेकर रोमांच जगाते हैं।
