सतयुग दर्शन ट्रस्ट (रजि०) के सौजन्य से आयोजित कार्यक्रम आध्यात्मिक क्रान्ति

सतयुग दर्शन ट्रस्ट (रजि०) के सौजन्य से आयोजित कार्यक्रम आध्यात्मिक क्रान्ति

ग्राम भूपानि स्थित, सतयुग दर्शन वसुन्धरा परिसर के विशाल सभागार में दिनाँक 24 एवं 25 दिसम्बर 2023 को आध्यात्मिक क्रान्ति नामक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम 24 तारीख दोपहर दो बजे आरम्भ हुआ व 25 तारीख शाम चार बजे तक चला। इस कार्यक्रम में सैकड़ों की संख्या में बिना किसी भेद-भाव के हर उम्र, धर्म, जाति व सम्प्रदाय के सदस्यों ने समान रूप से भाग लिया। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रथम दिवस वर्तमान समय में आध्यात्मिक क्रान्ति के आयोजन की आवश्यकता, परमात्मा, प्रकृति, माया, आत्मा व जीव जगत का खेल, सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव तथा स्वार्थपरता छोड़ परमार्थ की ओर बढ़ने का तरीका समझाया गया व द्वितीय दिवस शारीरिक-मानसिक स्वस्थता, अवगुण त्याग सद्‌गुणी बनने का तरीका, संस्कारवान बनने की महत्ता, अविचार छोड़ सत्‌-शास्त्र में विदित विचार अपनाने की आवश्यकता तथा भाव-स्वभाव परिवर्तित कर आत्मिकज्ञान प्राप्त करने की सूक्ष्म युक्ति समझायी गई।

कार्यक्रम के आयोजन की आवश्यकता के बारे में पूछने पर ट्रस्ट के मार्गदर्शक श्री सजन जी ने कहा कि प्रत्येक क्रान्ति के साथ बड़े परिवर्तन का भाव जुड़ा होता है। यह क्रांति भी कुदरती हुकम अनुसार संसार में बहुत बड़ा परिवर्तन लाने के निमित्त समर्पित है। कहने का आशय यह है कि यह क्रान्ति त्रेता, द्वापर जो बीत गया और कलुकाल जो जाने वाला है उनकी अधर्मयुक्त विकृत विचार धाराओं से उबर, सामाजिक जीवन में बहुत बड़ा आकस्मिक, त्वरित परिवर्तन लाने हेतु है और आद्‌ सभ्यता की जननी है यानि नवीन युग सतयुग की पुन: स्थापना हेतु है। इस तरह श्री सजन जी ने कहा कि यह आध्यात्मिक क्रान्ति सबको सजग करने और सुधारने आई है यानि इस क्रांति का सम्पूर्ण मानव समाज के दूषित मन-मस्तिष्क पर ऐसा चिर स्थाई सकारात्मक प्रभाव पड़ने वाला है कि जिसके फलस्वरूप हर मानव सत्य आत्मिक ज्ञान आत्मसात्‌ कर, कुदरत प्रदत्त धर्म पर समरसता से स्थिर बने रहने के निमित्त अपना तन-मन-धन वारने से भी नहीं सकुचाएगा और जिस उद्देश्य पूर्ति हेतु यह मानव जीवन मिला है, उस परम उद्देश्य की सहजता व सरलता से निर्विघ्न पूर्ति कर बंधनमुक्त हो जाएगा।

श्री सजन जी ने कहा कि यह क्रांति हमें जीवात्मा को परमात्मा संग जोड़ने की विद्या में पारंगत बना, अंतर्निहित आत्मा/ परमात्मा की दिव्य शक्तियों आदि की सत्ता एवं स्वरूप का प्रतिपादन कर, सर्वत्र व्याप्त एक आत्मा के सिद्धान्त पर मानसिक रूप से दृढ़ बनाने आई है। इसी क्रांति के माध्यम से हम अध्यात्मवाद पर विश्वास रखते हुए व तद्‌नुसार अपने शरीर व मन का संचालन करते हुए जीवन के परम पुरुषार्थों यथा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को सिद्ध कर सकते हैं व परमधाम पहुँच विश्राम को पा सकते हैं। इस संदर्भ में उन्होने कहा कि अगर हम सब भी समय की माँग अनुसार मानव जाति को त्रेता, द्वापर व कलियुग की दूषित आचार-संहिता से उबर, सतयुग की संस्कृति अनुरूप सत्य का प्रतीक बनाना चाहते हैं तो इस का शुभ आरम्भ सर्वप्रथम खुद से करना होगा यानि सबसे पहले खुद में वांछित स्वाभाविक परिवर्तन लाना होगा। इस प्रयास में सफल होने हेतु अपनी व्यस्त दिनचर्या से कुछ समय निकाल कर, वेद शास्त्रों में विदित शब्द ब्रह्म विचारों का अध्ययन, चिंतन, मनन व विवेचन करना होगा और जीवन के विचारयुक्त निर्विकारी रास्ते पर स्थिरता से निरंतर बने रहने की प्रक्रिया को विधिवत्‌ जानना होगा। तदुपरांत शास्त्र विदित नीति नियमों अनुसार ही जीवन में, अपना हर कदम आगे बढ़ाना होगा ताकि हम इन्द्रिय निग्रही बन, आत्मस्वरूप के ज्ञान, गुण व शक्ति का बोध कर, वैसे ही आत्मनिर्भर होकर आत्मविश्वास के साथ निर्भयता से युग परिवर्तन के लक्ष्य को प्राप्त कर श्रेष्ठता के प्रतीक बन जाएं।

अंत में श्री सजन जी ने वैश्विक स्तर पर राजा से लेकर रंक तक यानि सबसे अपने अन्तर्घट में सकारात्मक स्वाभाविक परिवर्तन लाने की करबद्ध प्रार्थना करी ताकि इस संसार से स्वार्थपर घिनौनी राजनीति का खेल समाप्त हो और हर व्यक्ति विधिवत्‌ आत्मिकज्ञान प्राप्तकर पुन: सदाचारी बनने के साथ-साथ सामाजिक, नैतिक उत्थान में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे सके। उन्होने ने कहा कि आज के समय में ऐसा करना इसलिए भी अति आवश्यक है क्योंकि युग परिवर्तित हो रहा है। अत: यही अनुकूल समय है जब असत्य-अधर्म के मार्ग पर चलने वाले हर दु:खी मानव को अनथक परिश्रम द्वारा जीवन की यथार्थता का ज्ञान बोध कराया जा सकता है और सत्यधर्म के विचारयुक्त मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित कर सतयुगी संस्कृति अपनाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। इसी पुरुषार्थ द्वारा इन्सान सर्व एकात्मा का भाव अपना सकता है और समभाव नज़रों में कर समदर्शिता अनुरूप सबके साथ सजनता का व्यवहार करने में समर्थ हो सकता है। अत: इस महत्तवपूर्ण बदलाव के दृष्टिगत सबसे निवेदन है कि अविलम्ब समभाव-समदृष्टि की युक्ति अपनाओ और दिव्यदृष्टि का सबक़ लेकर त्रिकालदर्शी हो जाओ व ब्रह्म नाम कहाओ।

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