कतर में देश के 8 पूर्व नौसैनिकों को फांसी की सजा के बाद भारत अपने नागरिकों को बचाने के लिए एक्टिव हो गया है। भारत अब हर वो मुमकिन कोशिश करेगा जिससे हमारे देश के नागरिकों को सुरक्षित रखा जा सके l परन्तु भारत के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री एस जयशंकर के लिए यह मुद्दा इतना आसान नहीं रहने वाला है। इसका कारण यह हैं कि कतर के साथ भारत के रिश्ते उतने अच्छे नहीं हैं।
बता दें कि रूस-यूक्रेन युद्ध में पश्चिमी देशों से लेकर अमेरिका तक को दो-टूक सुनाने वाले भारत के लिए खाड़ी देश कतर ने एक ऐसी मुश्किल खड़ी कर दी है जो पीएम नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर के लिए कठिन परीक्षा की घड़ी है। हाल के कुछ सालों में भारत ने दुनिया में जो प्रभाव हासिल किया है जोकि भारत की शक्ति को दिखाता हैं l परन्तु हाल ही में कतर में 8 पूर्व भारतीय नौसैनिकों को फांसी की सजा की खबर ने भारतीय राजनय को को कठिनाई में डाल दिया हैं l विपक्षी दल कांग्रेस ने कतर के इस फैसले के बाद केंद्र सरकार को निशाने पर ले लिया है।
गुरुवार को कतर में भारत के पूर्व 8 नौसैनिकों को फांसी की सजा सुनाई गई है। बता दें जिन लोगो को फांसी की सजा सुनाई गई हैं उनमे पूर्व भारतीय नौसेना कर्मी कैप्टन सौरभ वशिष्ठ, कमांडर पूर्णेंदु तिवारी, कैप्टन बीरेंद्र कुमार वर्मा, कमांडर सुगुनाकर पकाला, कमांडर संजीव गुप्ता, कमांडर अमित नागपाल और नाविक रागेश शामिल हैं। इस मुद्दे को भारत ने कतर के सामने भी उठाया है। कूटनीति में अब तक पूरी दुनिया में भारत का झंडा गाड़ने वाले जयशंकर के लिए खाड़ी देश कतर ने चुनौती भरा टास्क दे दिया हैं जो बेहद ही कठिनाई भरा होगा l जानकारी के लिए बता दें शरिया कानून के तहत कतर शासन करता हैं l शुरुआत में भारत ने तो इस मुद्दे को कतर के सामने उठाया था, साथ ही उन्हें बेदाग बताया था। परन्तु जब कतर की अदालत के फैसले आए उसके बाद भारत के लिए हालात बदल गए हैं।
क्या करेंगी अब भारत सरकार?
बता दें यूक्रेन और रूस युद्ध को लेकर जब जी-20 सम्मेलन में ऐसा अंदेशा जताया जा रहा था कि नई दिल्ली में हुए इस बैठक में कोई घोषणापत्र नहीं आ पाएगा तो उसी समय प्रधानमंत्री मोदी ने अपने निजी रिश्तों का इस्तेमाल करते हुए अमेरिका समेत सभी देशों को मनाया था और उसके बाद जी-20 सम्मेलन में सर्वसम्मति से घोषणापत्र जारी हुआ था। भारत के इस पहल की तारीफ पूरी दुनिया में की गयी थी l इसके साथ ही भारत के प्रधानमंत्री मोदी भी कई बार देश की इस उपलब्धि का जिक्र कर चुके हैं। परन्तु इस बार हालात कुछ बिगड़े हुए हैं l भारत के रिश्ते सऊदी अरब और यूएई के साथ तो अच्छे हैं परन्तु कतर के साथ भारत के रिश्ते गर्मजोशी वाले नहीं है। अब सबकी नजर पीएम मोदी पर हैं कि वह देश को इस मुश्किल घड़ी से निकालने के लिए कौन सा कूटनीतिक रुख अपनाएंगे l
जयशंकर के लिए सबसे मुश्किल समय
बता दें कि कतर का यह मुद्दा भारतीय कूटनीति के ‘हनुमान’ के रूप में उभरे विदेश मंत्री जयशंकर के लिए इतना आसान रहने वाला नहीं है। कतर के साथ भारत के रिश्ते तो ठीक हैं परन्तु यह नहीं भूलना होगा कि कतर पर आतंकी संगठनों के मदद के भी आरोप लगते रहते हैं। ऐसा बताया जाता हैं कि कतर पूरी दुनिया में आतंकवाद का सबसे बड़ा समर्थक भी है। इतना ही नहीं हमास से भी कतर के अच्छे रिश्ते रहे हैं। बता दें हमास कतर के पैसे के जरिए ही इजरायल में हमले करते रहता है। परन्तु दुनिया में अभी तक इस देश के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठी है। अब यह देखना होगा कि जयशंकर कैसे इस मुश्किल स्थिति से निकलकर विजयी बनते हैं l
बता दें हर देश वैसे कूटनीति में तो अपने बैकडोर चैनल हमेशा खुला रखते हैं। हो सकता है कि भारत अपने संपर्क के जरिए कतर से मध्यस्थता की कोशिश में जुट गया होगा। लेकिन जैसाकि ऊपर इस बात पर चर्चा हो चुकी है कि कतर के साथ भारत के रिश्ते वैसे नहीं है जिससे सबकुछ आसानी से हो पाए। ऐसे में भारत कूटनीति का कौन सा रास्ता अपनाएगा और कैसे इस मुसीबत से निकलेगा ये एक अहम सवाल है। जिसका जवाब सभी लोग जानना चाहते हैं l अभी तक हर मोर्चे पर मोदी के ‘हनुमान’ बने जयशंकर एक्टिव तो हो गए हैं लेकिन अभीतक के माहौल से लग रहा है कि भारत को सफलता नहीं मिली है।
पूर्व नौसैनिकों को कैसे मिलेगी राहत?
जैसा कि कतर की अदालत ने पूर्व नौसैनिकों को फांसी की सजा दे दी है तो अदालत से उन्हें कोई राहत नहीं मिलने वाली है। ऐसे में कतर के अमीर तमीम बिन अहमद अल थानी के पास ही इन भारतीय पूर्व नौसैनिकों को माफी देने का अधिकार है। ऐसा कहा जाता हैं कि कतर में दो मौकों पर यहां के अमीर कैदियों को माफी देते हैं। पहला, रमजान के मौके पर। दूसरा कतर के राष्ट्रीय दिवस को। जैसा कि सभी जानते हैं रमजान का मौका तो निकल चुका है। ऐसे में अब 18 दिसंबर को कतर के राष्ट्रीय दिवस के मौके पर भारतीय नागरिकों के लिए माफी का मौका है। यानी घड़ी की टिक-टिक बहुत तेजी के साथ आगे बढ़ रही है। भारत को कूटनीतिक रिश्तों के अपने सारे घोड़े खोलने होंगे तभी पूर्व नौसैनिकों को राहत मिल सकती है।