पहली सांस जब ली थी तुम्हारे उदर में,
मेरा नन्हा हृदय धड़का था तुम्हारे उदर में ,
मैंने महसूस किया था मां, तुम्हारे अंदर उमगते ममत्व को,
मैंने जिया था भरपूर तुम्हारे नए पनपते मातृत्व को।
तुम जब बार बार अपने उदर पर हाथ फिराती,
तुम्हारी हथेलियों का गर्म स्पर्श मुझे गर्भ में सहला जाता।
जब तुम मेरी कल्पना करके मुस्कुराती,
तुम्हारी मुस्कुराहट का झरना, मेरे भीतर भी फूट जाता।
तुम और मैं, मैं और तुम…. अस्थि मज्जा से गुंथे हुए,
हमारे सारे अहसास एक दूसरे से जुड़े हुए।
एक दिन अचानक सब कुछ बदल गया।
मेरे कन्या होने के प्रमाण से सारा दृश्य ही उलट गया।
मेरी प्राण दायिनी मां, तुम मुझे क्यूं ना बचा सकीं?
निश दिन दुर्गा को भजने वाली, तुम स्वयं को दुर्गा क्यों न बना सकीं ?
मेरा मर्दन करने से पहले ,मेरे हत्यारों को क्यों न मार सकीं ?
तुम्हारी देवी साधना एक दम निष्फल हो गई,
मुझे कोख में मार कर मां ,तुम देवी से दानवी हो गई ।
बंद कर दो शक्ति का पूजन …..
जब तुम भीतर की शक्ति को न जगा सकीं,
बंद कर दो शक्ति का महिमा मंडन…..
जब तुम नन्हीं शक्ति को ना बचा सकीं।