एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि पहुँच गयी अपने बचपन में,
यादों के गलियारों में ….
यादों का गलियारा भरा था कुछ खट्टी, कुछ मीठी,
कुछ कड़वी , कुछ दिल को कुरेदने वाली यादों से।
याद आ गया वो दिन जब
पहली बार किसी ने मुझे मोटी बुलाया था ,
मेरे हंसते खेलते बचपन पर प्रहार लगाया था ।
फिर एक दिन किसी ने मुझे बदसूरत बुलाया,
कितनी ही बार मुझे नाटी बुलाया गया, मेरे छोटे कद के लिए मेरा मज़ाक बनाया गया।
वो दिन भी याद है जब मुझे बुरी नज़र से देखा गया,
अपनी गंदी निगाह से मुझे अनावृत्त होने का एहसास दिलाया गया,
बिना मेरी इजाज़त के मेरे जिस्म ही नहीं ,मेरे रूह को छुआ गया।
कौन अपना, कौन पराया, कौन अपनों जैसा पराया…
ये सोचने पे मज़बूर किया.
मुझे लड़की क्यों बनाया ये खु़दा से बारम्बार पूछने पर मज़बूर किया।
ये कड़वी यादें सिर्फ़ मेरी ना होकर हर लड़की की हैं।
कैसे इन यादों को मिटाया जाए ?
कैसे आज की बचियों को उन दरिंदो से बचाया जाए ?
कल आज और कल, हर लड़की का शोषण हुआ है,
ऐसी यादों ने हर लड़की के सपनों को तोड़ा है ।
कब होगा नारी शोषण का अंत ?
कब हर लड़की खुले आसमान में सांस लेगी ?
कब उसकी यादें , प्यार और सत्कार भरी होंगी ?
है कोई जवाब, इंसान या खुदा के पास ?
यदि है तो कर कुछ ऐसा,
कि हर लड़की बन जाए मान हर घर का…
हर लड़की बन जाए अपने परिवार का सूत्र धार…
तभी बनेगा सुंदर यादों का संसार।
एकता सहगल मल्होत्रा