चिट्ठी न कोई संदेश

चिट्ठी न कोई संदेश ,
ना कोई बात, ना कोई गिला ,
आप ऐसे ही हम से क्यों हो गए जुदा ?
क्या आपने यह फैसला इसलिए लिया कि एक शाम पहले मैं आई थी आपके पास,
आपके सिरहाने बैठ कर,पकड़ कर आपका हाथ, मैंने ही आपसे कह दिया था ,
आपको जाना है तो चले जाओ,
अब अपने कष्टों से मुक्ति पा जाओ ।
आप ठहरे मेरी हर बात मानने वाले पापा,
हर बार की तरह ये बात भी मेरी मान ली,
और चुटकियों में दुनिया से जाने की ठान ली ।
अपने कई सालों पहले एक बार मुझे याद दिलाया था ,
बेटा फादर्स डे भूल गईं ,
मैंने भी बड़ी बेपरवाही से कह दिया था पापा भूली नहीं,
हां देर ज़रूर हो गई आपको आज के दिन की बधाई देने में।
आपने मुझे इतनी बड़ी सज़ा दे दी कि फिर कभी आपको फादर्स डे की बधाई देने का मौका न मिला,
अब किसको जा के बोलूं, किस से करूं मैं गिला ?
हर साल फादर्स डे धूम धाम से मनाती हूं,
खाना भी आपकी पसंद का पकाती हूं।
मैं तो ये मानती हूं हर दिन है आपका दिया हुआ,
मैंने आपकी सीख पे चलना सीख लिया !
आज मैं गर्व के साथ ये कह सकती हूं,
जैसा आपने चाहा, वैसा बन के दिखाया,
पहली बार जब आपको बिजनेस सूट पहन के दिखाया ,
कोमा में होते हुए भी आपने आंसू बहा कर अपना भाव दिखाया ,
जब मैं दुल्हन बनी, तो आप जा चुके थे,
लेकिन उस दिन भी हल्की हल्की ओस से आसमान से आशीर्वाद मुझ पर बरसा रहे थे ।
जब मां बनी तब भी आपने अपने तरीके से अपने होने का अहसास दिलाया,
आप कहीं नहीं गए, मेरे आसपास हो ,मुझे हर पल ये विश्वास दिलाया ।
आज जब सब जगह मेरी तारीफ होती है,
मेरे कामों के लिए मेरी वाह वाही होती है,
तो मैं फख्र से कहती हूं,
मैं अपने पापा की परी हूं,
हां मैं अपने पापा की परी हूं ।

एकता सहगल मल्होत्रा

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