अन्याय की गोलियाँ : ‘दि कन्फेशन’ में शून्यवाद और सामाजिक टीका-टिप्पणी का द्वंद्व

नई दिल्ली- दि कन्फेशन भारत में नेपाल दूतावास और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के छात्र संघ द्वारा समर्थित थिएटर विलेज नेपाल और आर्ट आश्रम इंडिया के बीच एक इंडो-नेपाल थिएटर गठजोड़़ है। इस नाटक का मंचन 26 फरवरी, 2023 को राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में किया गया जिसे बिमल सुबेदी और अनुराधा मजुमदार ने अपने संयुक्त निर्देशन उद्यम के रूप में तैयार किया था। रंगमंच की प्रख्यात हस्तियों और गणमान्य व्यक्तियों ने इस आयोजन में भाग लिया, नामतः – नेपाल के राजदूत, पद्म-श्री पुरस्कार विजेता विदुषी रीता गांगुली और श्री राम गोपाल बजाज, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार विजेता श्री अमित बनर्जी और सम्मानित पेंटर श्री तीर्थंकर बिस्वास सहित अन्य गणमान्य लोग।
नाटक की प्रेरणा प्रसिद्ध नेपाली नाटककार जगदीश घिमिरे की रचना सबिती से ली गई। एनएसडी के पूर्व छात्र बिमल सुबेदी ने इसे दिवंगत नाटककार की कलात्मक और रचनात्मक अखंडता को श्रद्धांजलि देने के लिए लिखा था। बहुभाषिक रूप में लिखा गया यह नाटक स्त्री के आख्यान को केंद्रीकृत करके पितृसत्ता और पूँजीवाद के बीच सहजीवी संबंधों के प्रभुत्व वाले आधुनिक समकालीन समाज पर एक तीखी टिप्पणी करता है। नाटक की शुरुआत महिला नायक द्वारा एक एकालाप के साथ होती है, जो समय और स्थान की सीमाओं को पार करते हुए सामाजिक संस्थाओं की वास्तविकताओं और उनके आसपास के अन्याय को उजागर करती है। यह नाटक शून्यवादी अथवा नकारवादी और बेतुकी परंपरा से उधार लेते हुए, महिला नायक के स्वस्थ शरीर के माध्यम से आधुनिक दुर्दशा की अस्वस्थता को समझने के लिए रूपकों के रूप में एक्स-रे, कई ड्रिप बोतलों और नमक का उपयोग करता है और लिंग, वर्ग, धर्म, जाति और नस्ल की दीवारों को ध्वस्त करता जाता है।
जैसा कि नाम से पता चलता है, दि कन्फेशन अनुभवी अभिनेत्री और शिक्षाविद् अनुराधा मजुमदार द्वारा निभाई गई महिला नायक द्वारा एक स्वीकारोक्ति है, जिन्होंने शिल्प में अपने वर्षां की महारत और दर्शकों को नाटक और उसकी विषय-वस्तु के साथ जोड़ने के लिए उन्हें खामोश या विचलित करने की कला के माध्यम से महिला के मानसिक सदमे और सामाजिक अन्याय का ईमानदार और दमदार चित्रण किया है। पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित विदुषी रीता गांगुली ने अपनी संवेदना इस प्रकार व्यक्त की, “यह एक अभिनेता के रूप में अनुराधा के बेहतरीन पलों में से एक था। इतने शानदार शो के लिए पूरी टीम और कलाकारों को बधाई।” श्री राम गोपाल बजाज (पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित) ने यह भी कहा कि “अनुराधा को इतने वर्षों के बाद, इतनी गरिमा और तन-मन-प्राण-आत्मा लगाकर प्रदर्शन करते हुए देखा, जिसने हमारी आत्मा को भीतर से छुआ और प्रेरित किया है और हमें हिम्मत दी है कि हम हर तरह की सामाजिक बुराइयों पर सवाल उठा सकें।” आंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली की एक छात्रा, नंदिनी गुप्ता जो कि एक दर्शक सदस्य थीं, इस प्रदर्शन से प्रभावित हुईं। अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा, “मुख्य अभिनेता के जोरदार और उग्र प्रदर्शन ने मुझे भाषा की बाधाओं के बावजूद नाटक को समझने में मदद की।”
स्वीकार करते हैं कि नाटक में काम करना पूरी तरह से एक नया अनुभव था, क्योंकि निहिलिज्म (विनासवाद, नकारवाद) को लेकर निर्देशक ने ऐसी तगड़ी चीर-फाड़ कर रखी थी कि उसके आर-पार होना खासा चुनौतीपूर्ण है। उनका मानना है कि उनका शिक्षण पेशा एक शिक्षाविद् के रूप में और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि एक अभिनेता के रूप में उनके विकास को प्रोत्साहन देने वाला एक वरदान है। सुबेदी के नाटक को प्रजित बश्याल और साजन सुनुंवर ने भी समर्थन दिया और इसे एक साथ आयोजित किया, जहाँ जेनी सुनुवर ने सहायक निर्देशक के रूप में काम किया। कला और रंगमंच की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए निर्देशक ने कहा, “कला केवल मनोरंजन नहीं है, यह जिम्मेदारी वहन करती है और परिणामों और उद्देश्य को दृढ़ता से दर्शाती और उद्घाटित करती है।” उनके विचारों और कार्यों में मजबूती दिखाई देती है जो अविस्मरणीय छवियाँ बनाते हैं तथा दर्शकों के मन-मस्तिष्क पर एक अमिट छाप छोड़ते हैं। सह-लेखक/निर्देशक और डिजाइनर बिमल सुबेदी कहते हैं : “दि कन्फेशन” नाटक में हम सामाजिक अन्याय और मानसिक आघात या सदमे की खोज करने की कोशिश कर रहे हैं। इस नाटक के लिए लोगों ने देर तक खड़े होकर तालियाँ बजाईं जिसका वह पूरा-पूरा हकदार था। “द कन्फेशन” में समाज के विसरा विश्लेषण ने दर्शकों को अवाक कर दिया।

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